एकादशी व्रत कथा – संक्षेप में 26 एकादशी की व्रत कथा

एकादशी व्रत कथा

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4. पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

पौष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है।

कथा के अनुसार भद्रावतीपूरी के राजा सुकेतुमान की पत्नी का नाम शैव्या था। राजा धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करते थे। सभी तरह के धर्माचरण करने के बाद भी राजा को पुत्र का अभाव बना ही रहा और इस कारण उनके पितरगण तर्पण का जल तक भी ग्रहण करना स्वीकार नहीं करते थे। ग्लानियुक्त दुःखी राजा आत्महत्या भी नहीं कर सकता अतः एक दिन सबको सोता छोड़कर वनगमन कर गया की कोई हिंसक पशु का शिकार बन जायेगा तो आत्महत्या का पाप नहीं लगेगा।

किन्तु वन में किसी भी हिंसक पशु ने उनका शिकार नहीं किया। अंत में थके-हारे राजा ने जल ढूँढना आरम्भ किया तभी एक सरोवर दिखाई दिया, शुभ शकुन होने लगे, राजा के दाहिने अंग फरकने लगे। वहां जाने पर कई मुनियों को जप करते हुये पाया। सबको प्रणाम करके राजा ने परिचय ज्ञात करना चाहा तो मुनियों ने बताया की वे विश्वेदेवा हैं आज पुत्रदा एकादशी है जो व्रत करने वाले को पुत्र प्रदान करती है आज से पांचवें दिन माघ मास आरम्भ होगा और हम सभी माघ स्नान करने के लिए इस उत्तम सरोवर पर आये हैं।

राजा ने अपने निपुत्र होने की व्यथा व्यक्त किया तो मुनियों ने आशीर्वाद देते हुए राजा को पुत्रदा एकादशी व्रत करने का निर्देश दिया। राजा ने वहीं पुत्रदा एकादशी व्रत किया और मुनियों का आशीर्वाद ग्रहण कर अपने राज्य वापस आया। शीघ्र ही राजा को पुत्र की प्राप्ति हो गयी।

  • पुत्रदा एकादशी पौष माह के शुक्ल पक्ष में होती है।
  • इसके अधिदेवता नारायण हैं।
  • पुत्रदा एकादशी पुत्र सुख प्रदान करने वाली है।
  • इस कथा को पढ़ने-सुनने से अश्वमेध यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है।

5. षट्तिला एकादशी व्रत कथा

माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का षट्तिला एकादशी नाम है। इसमें तिल का 6 प्रकार से प्रयोग करने का विधान है : स्नान, उबटन, होम, तर्पण, भोजन और दान। होम करने के लिये जो गोबर भूमि पर न गिरे उसमें तिल मिलाकर पहले ही 108 कंडे बना लेने चाहिए। कथा एक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाली ब्राह्मणी की है।

ब्राह्मणी परम भक्ता थी और व्रतादि के कारण कृषकाया हो गयी थी। अपना घर तक भी उसने दान कर दिया लेकिन उसने कभी अन्नदान नहीं दिया। एक दिन परीक्षा लेने के लिये भिक्षुक वेश में स्वयं भगवान गये तो भी उन्हें अन्न न देकर मिट्टी का ढेला दे दिया। अन्य पुण्यकर्मों के फलस्वरूप वह सदेह स्वर्ग पहुँच गयी जहाँ उसे सुंदर घर भी मिला किन्तु उसमें अन्न-धन कुछ नहीं था।

कुपित होकर भगवान विष्णु के पास गयी तो भगवान विष्णु ने कहा घर जाकर द्वार बंद कर लो, कुछ काल में देवियां तुम्हें देखने आएंगी तो षट्तिला एकादशी की कथा सुने बिना द्वार नहीं खोलना। उसने ठीक ऐसा ही किया और कथा सुनने के बाद उसने विधिपूर्वक षट्तिला एकादशी का व्रत किया जिससे दिव्य स्वरूपा होकर अन्य सभी समस्याओं से भी मुक्त हो गयी।

  • षट्तिला एकादशी माघ मास के कृष्ण पक्ष में होती है।
  • इसके अधिदेवता भगवान कृष्ण हैं।
  • इस एकादशी में ६ प्रकार से तिल का प्रयोग करना चाहिये।
  • यह एकादशी दरिद्रता, दुर्भाग्य और अनेकों प्रकार के कष्ट का निवारण करने वाली है।

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