कार्तिक माहात्म्य अध्याय 27 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य - सप्तविंशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 27

भगवान श्रीकृष्ण ने प्रेतपति धनेश्वर को नरकों का अनुभव कराने के बाद बताया कि इन नरकों में पापियों को कठोर दंड मिलता है, जैसे तप्तबालुक, अन्धतामिस्र, और कुम्भीपाक। जो लोग भूखों की सहायता नहीं करते या गरिमामयी वस्तुओं का अपमान करते हैं, वे इन नरकों में सज़ा के लिए जाते हैं। अंत में, धनेश्वर को यक्षलोक ले जाकर राजा बनाया गया, और उसके नाम पर तीर्थ बना, जिसे पुण्य स्थान माना गया। कार्तिक मास का व्रत मोक्ष की प्राप्ति का माध्यम है। सर्वप्रथम मूल माहात्म्य संस्कृत में दिया गया है तत्पश्चात हिन्दी में अर्थ, तत्पश्चात भावार्थ/सारांश ।

कार्तिक मास कथा : कार्तिक माहात्म्य अध्याय 27 हिन्दी में

भगवान श्रीकृष्ण ने आगे कहा – हे प्रिये! यमराज की आज्ञा शिरोधार्य करते हुए प्रेतपति धनेश्वर को नरकों के समीप ले गया और उसे दिखाते हुए कहने लगा – हे धनेश्वर! महान भय देने वाले इन नरकों की ओर दृष्टि डालो। इनमें पापी पुरुष सदैव दूतों द्वारा पकड़े जाते हैं, जिनका जीवन उन पापों का परिणाम है जो उन्होंने अपने जीवन में किए।

यह देखो यह तप्तबालुक नामक नरक है जिसमें देह जलने के कारण पापी विलाप कर रहे हैं, उनके दुःख की आवाज़ें आसमान तक पहुंच रही हैं। जो मनुष्य भोजन के समय भूखों को भोजन नहीं देता वह बार-बार इस नरक में डाले जाते हैं, क्योंकि दीन-हीन के प्रति उपेक्षा का परिणाम इतना भयानक होता है। वह प्राणी; जो गुरु, अग्नि, ब्राह्मण, गौ, वेद और राजा; इनको लात मारता है वह भयंकर नरक अतिशय पापों के करने पर मिलता है।

आगे देखो यह दूसरा नरक है जिसका नाम अन्धतामिस्र है। यहाँ पापियों को सुई की भांति मुख वाले तमोत नामक कीड़े काट रहे हैं, जो उन्हें हर क्षण के लिए और भी अधिक पीड़ा दे रहे हैं। इस नरक में दूसरों के चित्त को दुखाने वाले पापी गिराए जाते हैं। यह तीसरा नरक है जिसका नाम क्रकच है; इस नरक में पापियों को आरे से चीरा जाता है, और उनके अंतर्मन में केवल दुःख और पछतावे का अनुभव होता है।

यह नरक भी असिपत्रवण आदि भेदों से छः प्रकार का होता है। इसमें स्त्री तथा पुत्रों के वियोग कराने वाले मनुष्यों को कड़ाही में पकाया जाता है। दो प्रियजनों को दूर करने वाले मनुष्य भी असिपत्र नामक नरक में तलवार की धार से काटे जाते हैं और कुछ भेड़ियों के डर से भाग जाते हैं, जिनकी चीखें और चीत्कार इस नरक की भयानकता को प्रदर्शित करती हैं।

अब अर्गल नामक यह चौथा नरक देखो; इसमें पापी विभिन्न प्रकार से चिल्लाते हुए इधर-उधर भाग रहे हैं, जैसे वे अपने कर्मों से भागने का प्रयास कर रहे हों, परंतु कोई भी उपाय संभव नहीं है। यह नरक भी वध आदि भेदों से छः प्रकार का है।

अब तुम यह पाँचवाँ नरक देखो जिसका नाम कूटशाल्मलि है। इसमें अंगारों की तरह कष्ट देने वाले बड़े-बड़े कांटे लगे हैं, जो हर पापी की पीड़ा को और गहरा कर देते हैं। यह नरक भी यातना आदि भेदों से छः प्रकार का है और हर प्रकार के पापियों को इसमें दण्ड मिलता है। इस नरक में परस्त्रीगामी, परद्रोह, परद्रव्य अपहर्ता मनुष्य डाले जाते हैं, जो अपने घातक कार्यों का अंतर्द्वंद्व नहीं समझ पाते।

अब तुम यह छठा नरक देखो। उल्वण नामक नरक में सिर नीचे करके पापियों को लटकाया जाता है, जिससे उनकी स्थिति अधिक दयनीय हो जाती है। जो लोग भक्ष्याभक्ष्य का विचार नहीं करते और दूसरों की निन्दा तथा चुगली करते हैं वे इस नरक में डाले जाते हैं। दुर्गन्ध भेद से यह नरक भी छः प्रकार का है, और इसकी महत्ता को समझ पाना भी कठिन होता है।

यह सातवाँ नरक है जिसका नाम कुम्भीपाक है। यह अत्यन्त भयंकर है और यह भी छः प्रकार का है। इसमें महापातकी मनुष्यों को पकाया जाता है। इस नरक में सहस्त्रों वर्षों तक यातना भोगनी पड़ती है, यही रौरव नरक है, जो उन पापों का प्रतिफल होता है जो भले ही क्षणिक रूप में किए जाते हैं, परंतु परिणाम अत्यंत गंभीर होते हैं।

जो पाप इच्छारहित किए जाते हैं वह शुष्क (सूखा) और जो पाप इच्छापूर्वक किए जाते हैं वह पाप आर्द्र कहलाते हैं। इस प्रकार शुष्क और आर्द्र भेदों से पाप दो प्रकार के होते हैं, और इनके परिणाम स्वरूप उत्पन्न होने वाले दुखदायी अनुभवों से कोई भी अछूता नहीं रह सकता। इसके अतिरिक्त और भी अलग-अलग चौरासी प्रकार के पाप हैं, जो मानवता के पतन का कारण बनते हैं। 1 – अप्रकीर्ण, 2 – पाङ्कतेय, 3 – मलिनीकरण, 4 – जातिभ्रंशकरण, 5 – उपपाप, 6 – अतिपाप, 7 – महापाप; ये सात प्रकार के पातक हैं। जो मनुष्य जैसा कर्म करता है उसे इन सातों नरकों में उसके पाप कर्मों के अनुसार पकाया जाता है।

चूंकि तुम्हें कार्तिक व्रत करने वाले प्रभु भक्तों का संसर्ग प्राप्त हुआ था, उससे पुण्य की वृद्धि हो जाने के कारण ये सभी नरक तुम्हारे लिए निश्चय ही नष्ट हो गए हैं, और इस प्रकार तुम्हारी आत्मा को एक नई दिशा मिली है। इस प्रकार धनेश्वर को नरकों का दर्शन कराकर प्रेतराज उसे यक्षलोक में ले गए। वहाँ जाकर उसे वहाँ का राजा बना दिया, जिससे उसकी महिमा और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।

वही कुबेर का अनुचर ‘धनक्षय’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ, और उसकी कथा आज भी लोगों के बीच जीती जागती है। बाद में महर्षि विश्वामित्र ने उसके नाम पर तीर्थ बनाया था, जो लोगों के लिए पुण्य का एक प्रमुख स्थान बन गया। कार्तिक मास का व्रत महाफल देने वाला है, इसके समतुल्य अन्य कोई दूसरा पुण्य कर्म नहीं है, जो न केवल व्यक्तिगत विकास बल्कि सामाजिक कल्याण में भी योगदान देता है। जो भी मनुष्य इस व्रत को करता है तथा व्रत करने वाले का दर्शन करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति है, क्योंकि यह व्रत जीवन के वास्तविक अर्थ को पहचानने और उसे साधने का मार्ग प्रशस्त करता है।

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 27 भावार्थ/सारांश

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – हे प्रिये! यमराज की आज्ञा मानते हुए प्रेतपति धनेश्वर को नरकों के समीप ले गया और कहने लगा – हे धनेश्वर! इन भयावह नरकों की ओर दृष्टि डालो। इनमें पापी पुरुष सदैव दूतों द्वारा पकड़े जाते हैं। यह तप्तबालुक नामक नरक है, जिसमें पापी जलकर विलाप कर रहे हैं। जो मनुष्य भूखों को भोजन नहीं देता, वह बार-बार इस नरक में डाला जाता है। जो गुरु, अग्नि, ब्राह्मण, गौ, वेद और राजा को लात मारता है, वह भयंकर नरक में जाता है।

दूसरा नरक अन्धतामिस्र है; यहाँ पापियों को तमोत नामक कीड़े काटते हैं। तीसरा नरक क्रकच है; इसमें पापियों को आरे से चीरा जाता है। इसमें स्त्री और पुत्रों के वियोग कराने वाले मनुष्यों को कड़ाही में पकाया जाता है। चौथा नरक अर्गल है; इसमें पापी चिल्लाते हुए भागते हैं। पाँचवां नरक कूटशाल्मलि है; इसमें अंगारों के जैसे कांटे लगे हैं। छठा नरक उल्वण है, जहाँ पापियों को सिर नीचे लटकाया जाता है। सातवाँ नरक कुम्भीपाक है, जिसमें महापातकी मनुष्यों को पकाया जाता है, और इसमें सहस्त्रों वर्षों तक यातना भोगनी पड़ती है।

जो पाप इच्छारहित होते हैं, वे सूखे और इच्छापूर्वक किए गए पाप आर्द्र कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त चौरासी प्रकार के पाप हैं, जो मानवता के पतन का कारण बनते हैं। जो मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे इन नरकों में उसके पाप कर्मों के अनुसार दण्ड मिलता है। तुम्हें कार्तिक व्रत करने वाले भक्तों का संसर्ग प्राप्त हुआ, जिससे ये नरक तुम्हारे लिए नष्ट हो गए हैं।

धनेश्वर को नरकों का दर्शन कराकर प्रेतराज ने उसे यक्षलोक में ले जाकर राजा बना दिया। वही कुबेर का अनुचर ‘धनक्षय’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। महर्षि विश्वामित्र ने उसके नाम पर तीर्थ बनाया, जो पुण्य का प्रमुख स्थान बन गया। कार्तिक मास का व्रत महाफल देने वाला है, जो मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

कथा पुराण में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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