आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है जिसका विशेष महत्व बताया गया है। युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण ने पापांकुशा एकादशी व्रत की कथा कहते हुये विशेष रूप से एकादशी व्रत का माहात्म्य वर्णन किया। सर्वप्रथम पापांकुशा (आश्विन शुक्ल पक्ष) एकादशी मूल माहात्म्य/कथा संस्कृत में दिया गया है तत्पश्चात हिन्दी में अर्थ, तत्पश्चात भावार्थ/सारांश एवं अंत में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर भी दिये गये हैं। Papankusha ekadashi vrat katha
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा मूल संस्कृत में
युधिष्ठिर उवाच
कथयस्व प्रसादेन भगवन् मधुसूदन । इषस्य शुक्लपक्षे तु किं नामैकादशी भवेत् ॥
श्रीकृष्ण उवाच
शृणु राजेन्द्र वक्ष्यामि माहात्म्यं पापनाशनम् । शुक्लपक्षे चाश्वयुजि भवेदेकादशी तु या ॥
पापांकुशेति विख्याता सर्वपापहरा परा । पद्मनाभाभिधानं तु पूजयेत्तत्र मानवः ॥
सर्वाभीष्टफलं प्राप्य स्वर्गमोक्षप्रदं नृणाम् । तपस्तप्त्वा नरस्तीव्र चिरं सुनियतेन्द्रियः ॥
यत्फलं सम वाप्नोति तन्नत्वा गरुडध्वजम् । कृत्वापि बहुशः पापं नरा मोहसमन्विताः ॥५॥
न यान्ति नरकं घोरं नत्वा पापहरं हरिम् । पृथिव्यां यानि तीर्थानि पुण्यान्यायतनानि च ॥
तानि सर्वाण्यवाप्नोति विष्णोर्नामानुकीर्तनात् । देवं शार्ङ्गधरं विष्णुं ये प्रपन्ना जनार्दनम् ॥
न तेषां यमलोकश्च नृणां वै जायते क्वचित् । उपोष्यैकादशीमेको प्रसङ्गेनापि मानवः ॥
न याति यातनां यामीं पापं कृत्वा तु दारुणम् । वैष्णवः पुरुषो भूत्वा शिवनिन्दां करोति यः ॥
यो निन्देद्वैष्णवं लोके स याति नरकं ध्रुवम् । अश्वमेधसहस्राणि राजसूयशतानि च ॥१०॥
एकादश्युपवासस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् । एकादशीसमं पुण्यं किञ्चिल्लोके न विद्यते ॥
नेदृशं पावनं किञ्चित् त्रिषु लोकेषु विद्यते । यादृशं पद्मनाभस्य दिनं पातकहानिदम् ॥
यावन्नोपोष्यते जन्तुः पद्मनाभदिनं शुभम् । तावत्पापानि तिष्ठन्ति देहेऽस्मिन् मनुजाधिप ॥
नैकादशीसमं किञ्चित्त्रिषु लोकेषु विद्यते । व्याजेनापि कृता राजन्न दर्शयति भास्करम् ॥
स्वर्गमोक्षप्रदा ह्येषा शरीरारोग्यदायिनी । सुकलत्रप्रदा ह्येषा धनधान्यप्रदायिनी ॥१५॥
न गंगा न गया राजन् न काशी न च पुष्करम्। न चापि कौरवं क्षेत्रं पुण्यं भूप हरेर्दिनात् ॥
रात्रौ जागरणं कृत्वा समुपोष्य हरेर्दिनम् । अनायासेन भूपाल प्राप्यते वैष्णवं पदम् ॥
दश वै मातृपक्षे च दश राजेन्द्र पैतृके । प्रियाया दश पक्षे तु पुरुषमुद्धरेन्नरः ॥
चतुर्भुजा दिव्यरूपा नागारिकृतकेतनाः । स्रग्विणः पीतवस्त्रश्च प्रयान्ति हरिमन्दिरम् ॥
बालत्वे यौवनत्वेऽपि वृद्धत्वे च नृपोत्तम । उपोष्य द्वादशीं नूनं नैति पापोऽपि दुर्गतिम् ॥२०॥
पापांकुशामुपोष्यैव आश्विने चासितेतरे । सर्वपाप विनिर्मुक्तो हरिलोकं स गच्छति ॥
दत्त्वा हेमतिलान् भूमिं गामन्नमुदकं तथा । उपानद्वस्त्रछत्रादि न पश्यति यमं नरः ॥
यस्य पुण्यविहीनानि दिनान्यपगतानि च । लौहकारस्य भस्त्रेव श्वसन्नपि न जीवति ॥
अवन्ध्यं दिवसं कुर्याद्दरिद्रोऽपि नृपोत्तम । सदाचारान् यथाशक्ति स्नानदानादिकाः क्रियाः ॥
तडागारामसौधानां सत्राणां पुण्यकर्मणाम् । कर्तारो नैव पश्यन्ति धीरास्तां यमयातनाम् ॥२५॥
दीर्घायुषो धनाढ्याश्च कुलीना रोगवर्जिताः । दृश्यन्ते मानवा लोके पुण्यकर्त्तार ईदृशाः ॥
इति ते कथितं राजन् यत्पृष्टोऽहं त्वयाऽनघ । पापांकुशाया माहात्म्यं किमन्यच्छ्रोतुमिच्छति ॥
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्तपुराणे आश्विनशुक्ले पापांकुशैकादशीव्रतमाहात्म्यं सम्पूर्णम् ॥
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा हिन्दी में
युधिष्ठिर बोले – हे भगवन् ! हे मधुसूदन ! आश्विन शुक्लपक्ष की एकादशी का क्या नाम है ? सो कृपा करके कहें ।
श्रीकृष्ण बोले – हे राजेन्द्र ! आश्विन शुक्लपक्ष की जो एकादशी है उसका पापों को नष्ट करने वाला माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ, उसे सुनो । यह पापों को दूर करने वाली श्रेष्ठ एकादशी पापांकुशा नाम से प्रसिद्ध है। इसमें मनुष्य को पद्मनाभ का पूजन करना चाहिए । यह एकादशी सब इच्छाओं को पूर्ण करने वाली और स्वर्ग, मोक्ष को देने वाली है। जो मनुष्य इन्द्रियों को वश में करके बहुत समय तक तपस्या करता है । उसको जो फल मिलता है, वह फल गरुड़ध्वज भगवान को नमस्कार करने से मिलता है।
अज्ञान से बहुत पाप करके भी मनुष्य, पापनाशक भगवान् को नमस्कार करके घोर नरक को नहीं जाते । पृथ्वी में जितने तीर्थ और पवित्र स्थान हैं, उनका फल भगवान् के नाम के कीर्तन से मिल जाता है। जो शार्ङ्ग धनुषधारी, जनार्दन की शरण को प्राप्त हो गये हैं, वे मनुष्य कभी यमलोक को नहीं जाते। जो मनुष्य प्रसंगवश एक एकादशी का भी व्रत कर लेता है, वह कठिन पाप करके भी यमलोक को नहीं जाता।
जो वैष्णव होकर शिवजी की और शैव होकर विष्णु की निन्दा करता है, जो हजारों अश्वमेध और सैकड़ों राजसूय यज्ञ करने से फल होता है, वह फल एकादशी के उपवास के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं है। संसार में एकादशी के समान कोई पुण्य नहीं है। इसके समान पवित्र तीनों लोकों में कुछ नहीं है, जैसा कि पद्मनाभ की एकादशी का दिन पापों को दूर करने वाला है ।
हे मनुजाधिप ! जब तक मनुष्य पद्मनाभ की एकादशी का उपवास नहीं करता तब तक उसके शरीर में पाप रहते हैं । एकादशी के समान तीनों लोकों में कुछ नहीं है। हे राजन् ! किसी बहाने से भी जिसने एकादशी कर ली तो वह यमराज को नहीं देखता । वह एकादशी स्वर्ग, मोक्ष, आरोग्य, सुन्दर स्त्री और अन्न-धन को देने वाली है ।
हे भूप! एकादशी के समान पवित्र गंगा, गया, काशी, पुष्कर और कुरुक्षेत्र आदि तीर्थ भी नहीं हैं । हे भूपाल ! एकादशी का उपवास करके रात्रि में जागरण करके बिना परिश्रम विष्णु पद को प्राप्त हो जाता है । हे राजेन्द्र ! इसका उपवास करने से मनुष्य दस पीढ़ी माता के, दस पीढ़ी पितृ कुल के, दस पीढ़ी स्त्री के कुल का उद्धार कर देता है । वे मनुष्य दिव्य शरीर और चार भुजाएँ धारण करके माला और पीताम्बर पहिनकर गरुड़ पर बैठकर स्वर्ग को जाते हैं ।
नृपोत्तम ! बालकपन, बुढ़ापा अथवा युवावस्था में इसका व्रत करके पापी भी दुर्गति को प्राप्त नहीं होता । आश्विन शुक्लपक्ष में पाशांकुशा का उपवास करके मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णुलोक को जाता है । जो मनुष्य सुवर्ण, तिल, भूमि, गौ, अन्न, जल, छाता, जूता, वस्त्र इनका दान करता है वह यमराज को नहीं देखता ।
जिसके दिन बिना पुण्य के बीत गये वह लुहार की धौंकनी की तरह जीता हुआ भी मरे के तुल्य है । हे नृपोत्तम ! गरीब मनुष्य को भी शक्ति के अनुसार स्नान, दान आदि क्रिया करके सदाचार से रहकर अपना समय व्यतीत करना चाहिए । तालाब, बगीचा, मन्दिर, यज्ञ आदि शुभ कर्म करने वाले धीर पुरुष यमलोक के दुःख को नहीं देखते । ऐसे पुण्य करने वाले संसार में दीर्घायु, धनाढ्य, कुलीन और नीरोग दिखाई। देते हैं ।
हे राजन् ! जो आपने मुझसे पूछा था वह पापांकुशा का माहात्म्य मैंने आपको सुनाया, अब और क्या सुनने की इच्छा है ?
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा का सारांश या भावार्थ
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है। पापों के लिये यह एकादशी अंकुश के सामान है इसीलिये इसका नाम पापांकुशा एकादशी है। मनुष्य जब तक पापांकुशा एकादशी नहीं करता है तब तक उसके शरीर का पाप नष्ट नहीं होता। इस एकादशी के प्रभाव से मनोकामना की पूर्ति होती है एवं स्वर्ग/मोक्ष के द्वार भी खुल जाते हैं।
- पापांकुशा एकादशी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में होती है।
- इसके अधिदेवता पद्मनाभ कहे गए हैं।
कथा पुराण में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।