कार्तिक मास का व्रत भगवान विष्णु को प्रिय है और इसमें पांच मुख्य कर्म शामिल हैं: रात्रि जागरण, प्रात: स्नान, तुलसी वट सिंचन, उद्यापन, और दीपदान। ऋषियों ने बताया कि कार्तिक व्रत मोक्ष की इच्छा करने वालों और भोग की इच्छा रखने वालों के लिए अनिवार्य है। संकट में फंसे व्रती को पास के भगवान शंकर या विष्णु के मंदिर में जाकर जागरण करना चाहिए। अन्यथा, पीपल या तुलसी के नीचे जाकर जागरण कर सकता है। भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करने से भी फल मिलता है। दीपदान न कर पाने पर दूसरे का दीप बचाना चाहिए। सर्वप्रथम मूल माहात्म्य संस्कृत में दिया गया है तत्पश्चात हिन्दी में अर्थ, तत्पश्चात भावार्थ/सारांश ।
कार्तिक माहात्म्य अध्याय 28 मूल संस्कृत में
सूत उवाच
इत्युक्त्वा वासुदेवोऽसौ सत्यभामामतिप्रियाम् । सायंसंध्यादिकं कर्तुं जगाम जननीगृहम् ॥१॥
एवं प्रभावः प्रोक्तोऽयं कार्तिकः पापनाशनः । विष्णुप्रियकरो नित्यं भुक्तिमुक्तिप्रदः सदा ॥२॥
हरिजागरणं प्रातः स्नानं तुलसिसेवनम् । उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके ॥३॥
पंचकैर्व्रतकैरेभिः संपूर्णं कार्तिकव्रतम् । फलं प्राप्नोति तत्प्रोक्तं भुक्तिमुक्तिफलप्रदम् ॥४॥
ऋषय ऊचुः
विष्णोः प्रियोऽतिफलदः प्रोक्तोऽयं रोमहर्षणः । कार्तिकस्य विधिः सम्यक्पावनः पापनाशनः ॥५॥
अवश्यमेव कर्त्तव्यः प्राप्य दुःखनिवारणः । मोक्षार्थिभिर्नरैः सम्यग्भोगकामैरथापिवा ॥६॥
एवं स्थिते यथाकश्चिद्व्रतस्थः संकटे स्थितः । दुर्गारण्यस्थितो वापि व्याधिभिः परिपीडितः ॥७॥
कथं तेन प्रकर्तव्यं कार्तिकव्रतकं शुभम्। यस्मादत्यंतफलदं कर्तव्यं तु यथा नरैः ॥८॥
सूत उवाच
तत्सर्वं कथयिष्येऽहं शृणुध्वं मुनिपुंगवाः। विष्णोः शिवस्य वा कुर्यादालये हरिजागरम् ॥९॥
शिवविष्णुगृहाभावे सर्वदेवालयेष्वपि। दुर्गारण्यस्थितो यश्च यदि वाऽपद्गतो भवेत् ॥१०॥
कुर्याद्व्टाश्वत्थमूले तुलसीनां वनेष्वपि। विष्णुनामप्रधानानां गायनाद्विष्णुसन्निधौ ॥११॥
गोसहस्रप्रदानस्य फलं प्राप्नोति मानवः। वाद्यकृत्पुरुषश्चापि वाजपेयफलं लभेत् ॥१२॥
सर्वतीर्थावगाहोत्थं नर्तकः फलमाप्नुयात्। आपद्गतो यदाप्यंभो न लभेत्स्नपनाय सः॥१३॥
व्याधितो वा पुनः कुर्याद्विष्णोर्नामापमार्जनम्। उद्यापनविधिं कर्तुं न शक्तो यो व्रते स्थितः ॥१४॥
ब्राह्मणान्भोजयेच्छक्त्या व्रतसंपूर्णहेतवे।अशक्तो दीपदाने तु परदीपं प्रबोधयेत् ॥१५॥
तेषां वा रक्षणं कुर्याद्वातादिभ्यः प्रयत्नतः । अभावे तुलसीनां तु पूजयेद्वैष्णवं द्विजम् ॥१६॥
तस्मात्संनिहितो विष्णुः स्वभक्तेष्वेव सर्वदा । सर्वाभावे व्रती कुर्याद्ब्राह्मणानां गवामपि ॥१७॥
सेवां वाश्वत्थवटयोर्व्रतसंपूर्णहेतवे।
ऋषय ऊचुः
कथं त्वयाश्वत्थवटौ गोब्राह्मणसमौ स्मृतौ ॥१८॥ सर्वेभ्योऽपि तरुभ्यस्तौ कस्मात्पूज्यतरौ स्मृतौ।
सूत उवाच
अश्वत्थरूपी भगवान्विष्णुरेव न संशयः ॥१९॥
रुद्ररूपी वटस्तद्वत्पलाशो ब्रह्मरूपधृक्। दर्शनं पूजनं सेवा तेषां पापहरा स्मृता ॥२०॥
ऋषय ऊचुः
कथं वृक्षत्वमापन्ना ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः। एतत्कथय सर्वज्ञ संशयोऽत्र महान्हि नः ॥२१॥
सूत उवाच
पार्वतीशिवयोर्देवैः सुरतं कुर्वतोः किल । अग्निर्ब्राह्मणरूपेण प्रेषितो विघ्नकृत्पुरा ॥२२॥
ततः सा पार्वती क्रुद्धा शशाप त्रिदिवौकसः । रतोत्सवसुखभ्रंशात्कंपमाना रुषा तदा ॥२३॥
पार्वत्युवाच
कृमिकीटादयोऽप्येते जानंति सुरतं सुखम् । तद्विघ्नकरणाद्देवा ह्युद्भिज्जत्वमवाप्स्यथ ॥२४॥
सूत उवाच
एवं सा पार्वती देवान् शशाप क्रुद्धमानसा । तस्माद्वृक्षत्वमापन्नाः सर्वे देवगणाः किल ॥२५॥
तस्मादिमौ विष्णुमहेश्वरावुभौ बभूवतुर्बोधिवटौ मुनीश्वराः ।
बोधिस्त्वगादार्किदिने स्पृशत्वमस्पृश्यतामर्कजविष्णुयोगात् ॥२६॥
॥ इति श्रीपद्मपुराणे कार्तिकमाहात्म्ये कार्तिकामाहात्म्ये श्रीकृष्णसत्यभामासंवादे अश्वत्थवटप्रशंसनंनाम अष्टाविंशोऽध्यायः ॥
कार्तिक मास कथा : कार्तिक माहात्म्य अध्याय 28 हिन्दी में
सूतजी ने कहा – इस प्रकार अपनी अत्यन्त प्रिय सत्यभामा को यह कथा सुनाकर भगवान श्रीकृष्ण सन्ध्योपासना करने के लिए माता के घर में गये। यह कार्तिक मास का व्रत भगवान विष्णु को अतिप्रिय है तथा भक्ति व मुक्ति प्रदान करने वाला है, जो प्रतिवर्ष भक्तों द्वारा श्रद्धा और आस्था से मनाया जाता है।
1 – रात्रि जागरण, 2 – प्रात:काल का स्नान, 3 – तुलसी वट सिंचन, 4 – उद्यापन और 5 – दीपदान- यह पाँच कर्म भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाले हैं, इसलिए कार्तिक मास करने वालों को इनका पालन अवश्य करना चाहिए। (इन कर्मों के माध्यम से भक्त भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और धर्म का पालन करते हुए अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।)
ऋषि बोले – भगवान विष्णु को प्रिय, अधिक फल की प्राप्ति कराने वाले, शरीर के प्रत्येक अंग को प्रसन्न करने वाले कार्तिक माहत्म्य आपने हमें बताया। यह मोक्ष की कामना करने वालो तथा भोग की इच्छा रखने वाले मनुष्यों को यह व्रत अवश्य ही करना चाहिए क्योंकि इस व्रत में आत्मा की शुद्धि और भक्ति का उदय होता है।
इसके अतिरिक्त, हम आपसे एक प्रश्न पूछना चाहते हैं कि यदि कार्तिक माह का व्रत करने वाला मनुष्य किसी संकट में फंस जाये या वह किसी वन में हो या व्रती किसी रोग से ग्रस्त हो जाये तो उस मनुष्य को कार्तिक व्रत किस प्रकार करना चाहिए? क्योंकि कार्तिक व्रत भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय है और इसे करने से मुक्ति एवं भक्ति प्राप्त होती है, इसलिए इसे छोड़ना नहीं चाहिए।
श्रीसूतजी ने कहा –
- यदि कार्तिक का व्रत करने वाला मनुष्य किसी संकट में फंस जाये, चाहे वह मानसिक हो या शारीरिक, तो उसे धैर्य धारण करके भगवान शंकर या भगवान विष्णु के मन्दिर में जाकर रात्रि जागरण करना चाहिए।
- यदि इनका मंदिर न मिले जो किसी भी देवता के मंदिर पर जाकर करे।
- यदि व्रती घने वन में फंस जाये अथवा किसी प्रकार की आपत्ति उपस्थित हो जाये तो फिर पीपल के वृक्ष के नीचे या तुलसी के वन में जाकर जागरण करे।
भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर विष्णुजी का कीर्तन करे क्योंकि भक्ति और श्रद्धा से किया गया कीर्तन सहस्त्रों गायों के दान के समान फल की प्राप्ति करता है। जो मनुष्य विष्णुजी के कीर्तन में वाद्ययंत्र बजाता है, उसका फल वाजपेय यज्ञ के समान होता है, जबकि हरि कीर्तन में नृत्य करने वाले मनुष्यों को सभी तीर्थों में स्नान करने का फल मिलता है।
- संकट के समय या रोगी हो जाने और जल न मिल पाने की स्थिति में केवल भगवान विष्णु के नाममात्र से मार्जन (मंत्रस्नान) करके भी लाभ उठाया जा सकता है।
- यदि उद्यापन न कर सके, तो व्रत की पूर्त्ति के लिए ब्राह्मण को भोजन करा दे; क्योंकि अलक्षित भगवान विष्णु के ही लक्षित स्वरूप ब्राह्मण होते हैं और ब्राह्मणों के प्रसन्न होने के कारण विष्णुजी प्रसन्न रहते हैं।
- यदि मनुष्य दीपदान करने में असमर्थ हो तो दूसरे के दीप की वायु आदि से भली-भांति रक्षा करे।
- यदि तुलसी का पौधा समीप न हो, तो वैष्णव ब्राह्मण की ही पूजा कर ले क्योंकि भगवान विष्णु सदैव अपने भक्तों के समीप रहते हैं।
- इन सबके न होने पर कार्तिक का व्रत करने वाला मनुष्य ब्राह्मण, गौ, पीपल और वटवृक्ष की श्रद्धापूर्वक सेवा करे, क्योंकि इन सभी को भगवान विष्णु की उपासना का स्थान माना जाता है।
शौनक आदि ऋषि बोले – आपने गौ तथा ब्राह्मणों के समान पीपल और वट वृक्षों को बताया है और सभी वृक्षों में पीपल तथा वट वृक्ष को ही श्रेष्ठ कहा है, इसका कारण बताइए।
सूतजी बोले – पीपल भगवान विष्णु का और वट भगवान शंकर का स्वरूप है। पलाश ब्रह्माजी के अंश से उत्पन्न हुआ है (इसका औषधीय महत्व अतिरिक्त विषय है, यहां आध्यात्मिक महत्व की चर्चा है)। जो कार्तिक मास में उसके पत्तल में भोजन करता है, वह भगवान विष्णु के लोक में जाता है। जो इन वृक्षों की पूजा, सेवा एवं दर्शन करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं (अर्थात सुख और शांति प्राप्ति के कारण होते हैं)।
ऋषियों ने पूछा – हे प्रभु! हम लोगों के मन में एक शंका है कि ब्रह्मा, विष्णु और शंकर वृक्ष स्वरूप क्यों हुए? कृपया आप हमारी इस शंका का निवारण कीजिए।
सूतजी बोले – प्राचीनकाल में भगवान शिव तथा माता पार्वती विहार कर रहे थे। उस समय उनके विहार में विघ्न उपस्थित करने के उद्देश्य से अग्निदेव ब्राह्मण का रूप धारण करके वहाँ पहुँचे। विहार के आनन्द में विघ्न उपस्थित हो जाने के कारण कुपित होकर माता पार्वती ने सभी देवताओं को शाप दे दिया।
माता पार्वती ने कहा – हे देवताओं! विषयसुख से कीट-पतंगे तक अनभिज्ञ नहीं हैं। आप लोगों ने देवता होकर भी उसमें विघ्न उपस्थित किया है; इसलिए आप सभी वृक्ष बन जाओ। (कृमिकीटादयोऽप्येते जानंति सुरतं सुखम् । तद्विघ्नकरणाद्देवा ह्युद्भिज्जत्वमवाप्स्यथ ॥)
सूतजी बोले – इस प्रकार कुपित पार्वती जी के शाप के कारण समस्त देवता वृक्ष बन गये। यही कारण है कि भगवान विष्णु पीपल और शिवजी वट वृक्ष हो गये। इसलिए भगवान विष्णु का शनिदेव के साथ योग होने के कारण केवल शनिवार को ही पीपल को छूना चाहिए, अन्य किसी भी दिन नहीं छूना चाहिए।
कार्तिक माहात्म्य अध्याय 28 भावार्थ/सारांश
सूतजी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को कथा सुनाकर सन्ध्योपासना के लिए माता के घर गये। इस कथा के माध्यम से उन्होंने भक्तों को धार्मिक उपायों और अनुष्ठानों का महत्व समझाया। कार्तिक मास का व्रत भगवान विष्णु को प्रिय है, जो भक्तों द्वारा श्रद्धा से मनाया जाता है। इस माह में विशेष रूप से उपासना के कर्मों का आयोजन किया जाता है, जिसमें रात्रि जागरण, प्रातःकाल स्नान, तुलसी वट सिंचन, उद्यापन, और दीपदान ऐसे कर्म हैं जो भगवान को प्रसन्न करते हैं।
भक्तजन इस अवसर पर विशेष रूप से संगठित होते हैं और सामूहिक पूजा-अर्चना करते हैं ताकि एकजुटता तथा श्रद्धा का वातावरण बन सके। यदि किसी संकट में कार्तिक व्रत करने वाला फंसे, तो उसे धैर्य से भगवान शंकर या विष्णु के मन्दिर में जागरण करना चाहिए। जागरण के दौरान, भक्तों को भजन-कीर्तन का आयोजन करना चाहिए, जिससे उनकी भक्ति और अधिक दृढ़ होती है।
- यदि मंदिर न मिले, तो वह किसी भी देवता के मंदिर पर जाए।
- संकट या रोग की स्थिति में भगवान विष्णु के नाम से मार्जन कर लाभ उठाया जा सकता है।
- उद्यापन न कर पाने पर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है और धर्म का पालन होता है।
- दीपदान में असमर्थ होने पर दूसरों के दीप की रक्षा करें, क्योंकि यह भी बहुत महत्वपूर्ण है।
- यदि तुलसी का पौधा नहीं हो, तो वैष्णव ब्राह्मण की पूजा करें, क्योंकि वे भगवान की भक्ति में समर्पित होते हैं।
विहार में विघ्न उपस्थित होने पर माता पार्वती ने देवताओं को शाप दे दिया कि वे वृक्ष बन जाएं, जिसके फलस्वरूप भगवान विष्णु पीपल और शिवजी वट हो गए। इस घटना के पीछे भक्ति और श्रद्धा का एक गहरा संदेश छिपा है, जो आज भी भक्तों को प्रेरित करता है।
कथा पुराण में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।