भाद्रपद के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम अजा एकादशी है। युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण ने कथा में बताया कि यह एकादशी सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र से संबंधित है। जब सत्यवादी हरिश्चंद्र के ऊपर दुखों का पहाड़ टूटा था तो उन्हें अपनी पत्नी और स्वयं तक को भी बेचना पड़ा था। सौभाग्य से गौतम मुनि का समागम हुआ और उन्होंने अजा एकादशी व्रत का उपदेश दिया जिसके प्रभाव से सत्यवादी हरिश्चंद्र के समस्त दुःख समाप्त हो गये।
सर्वप्रथम अजा (भाद्र कृष्ण पक्ष) एकादशी मूल माहात्म्य/कथा संस्कृत में दिया गया है तत्पश्चात हिन्दी में अर्थ, तत्पश्चात भावार्थ/सारांश एवं अंत में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर भी दिये गये हैं। Aja ekadashi vrat katha
अजा एकादशी व्रत कथा मूल संस्कृत में
युधिष्ठिर उवाच
भाद्रस्य कृष्णपक्षे तु किं नामैकादशी भवेत् । एतदिच्छान्यहं श्रोतुं कथयस्व जनार्दन ॥१॥
श्रीकृष्ण उवाच
शृणुष्वैकमना राजन् कथयिष्यामि विस्तरात् । अजेति नाम्ना विख्याता सर्वपापप्रणाशिनी ॥
पूजयित्वा हृषीकेशं व्रतं तस्याः करोति यः । पापानि तस्य नश्यन्ति व्रतस्य श्रवणादपि ॥
नातः परतरा राजन् लोकद्वयहितावहा । सत्यमुक्तं मया ह्येतन्निश्चयं भाषितं मम ॥
हरिश्चन्द्र इति ख्यातो बभूव नृपतिः पुरा । चक्रवर्ती सत्यसन्धः समस्ताया भुवः पतिः ॥५॥
कस्यापि कर्मणो योगाद्राज्यभ्रष्टो बभूव सः । विक्रीय वनितां पुत्रान् स चकारात्मविक्रयम् ॥
पुल्कसस्य च दासत्वं गतो राजा स पुण्यकृत् । सत्यमालम्ब्य राजेन्द्र मृतचैलापहारकः ॥
सोऽभवन्नृपतिश्रेष्ठो न सत्याच्चलितस्तथा । एवं गतस्य नृपतेर्बहवो वत्सरा गताः ॥
ततश्चिन्तापरो राजा बभूवात्यन्तदुःखितः । किं करोमि क्व गच्छामि निष्कृतिर्मे कथं भवेत् ॥
इति चिन्तयतस्तस्य मग्नस्य वृजिनार्णवे । आजगाम मुनिः कश्चिज्ज्ञात्वा राजानमातुरम् ॥१०॥
परोपकरणार्थाय निर्मितो ब्रह्मणा द्विजः । स तं दृष्ट्वा द्विजवरं नमाम नृपसत्तमः ॥
कृताञ्जलिपुटो भूत्वा गौतमस्याग्रतः स्थितः । कथयामास वृत्तान्तमात्मनो दुःखसंयुतम् ॥
श्रुत्वा नृपतिवाक्यानि गौतमो विस्मयान्वितः । उपदेशं नृपतये व्रतस्यास्य मुनिर्ददौ ॥
मासि भाद्रपदे राजन् कृष्णपक्षे तु शोभना । एकादशीसमायाता अजानाम्न्यतिपुण्यदा ॥
तस्याः कुरु व्रतं राजन् पापनाशो भविष्यति । तव भाग्यवशादेषा सप्तमेऽह्नि समागता ॥१५॥
उपवासपरो भूत्वा रात्रौ जागरणं कुरु । एवं तस्य व्रते चीर्णे सर्वपापक्षयो भवेत् ॥
तव पुण्यप्रभावेण चागतोऽहं नृपोत्तम । इत्येवं कथयित्वा तु मुनिरन्तरधीयत ॥
मुनिवाक्यं नृपः श्रुत्वा चकार व्रतमुत्तमम् । कृते तस्मिन् व्रते राज्ञः पापस्यान्तोऽभवत् क्षणात् ॥
श्रूयतां राजशार्दूल प्रभावोऽस्य व्रतस्य च । यदुःखं बहुभिर्वषैर्भोक्तव्यं तत्क्षयो भवेत् ॥
निस्तीर्णदुःखो राजाऽऽसीद्व्रतस्यास्य प्रभावतः । पत्न्या सह समायोगं पुत्रजीवनमाप सः ॥२०॥
देवदुन्दुभयो नेदुः पुष्पवर्षमभूद्दिवः । एकादश्याः प्रभावेण प्राप्तं राज्यमकण्टकम् ॥
स्वर्गं लेभे हरिश्चन्द्रः सपुरः सपरिच्छदः । ईदृग्विधं व्रतं राजन् ये कुर्वन्ति द्विजोत्तमाः ॥
सर्वपापविनिर्मुक्तास्त्रिदिवं यान्ति ते ध्रुवम् । पठनाच्छ्रवणाद्राजन्नश्वमेधफलं लभेत् ॥
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्तपुराणे अजानामैकादश्याव्रतमाहात्म्यं सम्पूर्णम् ॥१९॥
अजा एकादशी व्रत कथा हिन्दी में
युधिष्ठिर बोले – हे जनार्दन । भाद्रपद के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है ? यह मेरी सुनने की इच्छा है, सो आप कहिये ।
श्रीकृष्ण बोले – हे राजन् ! मैं विस्तार से कहूँगा तुम एकाग्र मन से सुनो। यह सब पापों को दूर करने वाली अजा नाम से विख्यात है। हृषीकेश भगवान् का पूजन करके जो इसका व्रत करता है अथवा माहात्म्य सुनता है उसके पाप दूर हो जाते हैं। हे राजन् ! इससे बढ़कर दोनों लोकों का हित करने वाली कोई नहीं है, मैंने सत्य कहा है इसमें संशय नहीं है ।
प्राचीन समय में सम्पूर्ण पृथ्वी का स्वामी चक्रवर्ती हरिश्चन्द्र नाम का सत्यवादी राजा था । वह किसी कर्म के वश राज्य से भ्रष्ट हो गये। उन्होंने अपनी स्त्री, पुत्र और अपने शरीर तक को भी बेच दिया। हे राजेन्द्र ! वह धर्मात्मा राजा चांडाल के यहाँ दास हो गया, परन्तु उसने सत्य नहीं छोड़ा। स्वामी की आज्ञा से वह कर के रूप में शव का वस्त्र लेने लगा परन्तु वह राजा सत्य से नहीं हटा । इस तरह से राजा को बहुत से वर्ष बीत गये ।
राजा बहुत दुखी होकर चिन्ता करने लगा कि मैं क्या करूँ और कहाँ जाऊँ, मेरा उद्धार कैसे हो । इस प्रकार शोकसागर में डूबे हुए, चिंता युक्त, दुखी राजा के पास गौतम नामक मुनीश्वर आये । ब्रह्मा ने परोपकार करने के लिए ही ब्राह्मण को रचा है। मुनीश्वर को देखकर राजा ने उनको प्रणाम किया । हाथ जोड़कर राजा गौतम के सामने खड़ा हो गया और अपने दुःख का वृत्तान्त सुनाया । राजा के वचन सुनकर गौतम को विस्मय हुआ ।
मुनीश्वर ने राजा के लिए इस व्रत (अजा एकादशी) का उपदेश दिया । भादो के कृष्णपक्ष में पुण्य देने वाली सुन्दर अजा नाम की एकादशी आ गई है । उसका तुम व्रत करो, इससे पाप नष्ट हो जाएगा और तुम्हारे भाग्य से वह आज से सातवें दिन होगी । उपवास करके रात में जागरण करना, इस प्रकार उसका व्रत करने से पाप दूर हो जाएगा । हे नृपोत्तम ! तुम्हारे भाग्य से मैं आ गया हूँ। इस तरह राजा से कहकर मुनीश्वर अन्तर्धान हो गये ।
मुनीश्वर का वचन सुनकर राजा ने उत्तम व्रत को किया । इस व्रत के करने से राजा का पाप क्षण भर में नष्ट हो गया। हे राजशार्दूल ! इस व्रत का प्रभाव सुनो । जो कष्ट बहुत वर्षों तक भोगने योग्य है वह शीघ्र नष्ट हो जाता है । इस व्रत के प्रभाव से राजा का दुःख दूर हो गया पत्नी मिल गई और मरा हुआ पुत्र भी जीवित हो गया । देवताओं ने नगाड़े बजाये, आकाश से फूलों की वर्षा हुई। एकादशी के प्रभाव से राजा ने निष्कंटक राज्य किया ।
अंत में सब पुरवासियों और कुटुम्बियों समेत राजा स्वर्ग को गया। हे राजन् ! इस प्रकार के व्रत को जो द्विजोत्तम करते हैं वे निश्चय सब पापों से छूटकर स्वर्ग को जाते हैं। हे राजन् ! इसके पाठ करने और सुनने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है ।
अजा एकादशी व्रत कथा का सारांश या भावार्थ
भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा एकादशी है। कथा कुछ इस प्रकार है, सत्यवादी हरिश्चंद्र की कथा से सभी परिचित ही हैं, जब चांडाल के यहाँ उन्होंने स्वयं का विक्रय कर दिया और दुःखों का भोग कर रहे थे तो स्वभावतः उपकार करने के लिये घूमने वाले ब्राह्मण गौतम मुनि उनके पास आये।
सत्यवादी हरिश्चंद्र ने उनको आपबीती सुनाई तो गौतम मुनि को भी विस्मय हो गया। गौतम मुनि ने सातवें दिन पड़ने वाली अजा एकादशी का उपदेश राजा हरिश्चंद्र को दिया, जिसे करने के बाद वो दुःख से निवृत्त हो गये।
- अजा एकादशी भाद्र मास के कृष्ण पक्ष में होती है।
- इसके अधिदेवता भगवन हृषिकेश हैं।
कथा पुराण में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।