कथा कहते हुये भगवान श्रीकृष्ण ने अपरा एकादशी को पुण्यदायक और पापनाशक बताया है। अपरा व्रत करने वाले संसार में प्रसिद्ध होते हैं और इस व्रत के द्वारा व्यक्ति विभिन्न महापापों से मुक्त हो जाता है, जैसे कि ब्रह्महत्या और गर्भहत्या आदि। यह पापों को काटने के लिए कुल्हाड़ी और अंधकार के लिए सूर्य के समान है। पाप से डरे हुए मनुष्यों को अपरा एकादशी का उपवास करना चाहिए। इस व्रत का फल विशेष पुण्यकालों पर विभिन्न तीर्थस्थलों के स्नान और दान के समान है। अपरा एकादशी का व्रत करते हुए मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक जाता है।
सर्वप्रथम अपरा (ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष) एकादशी मूल माहात्म्य/कथा संस्कृत में दिया गया है तत्पश्चात हिन्दी में अर्थ, तत्पश्चात भावार्थ/सारांश एवं अंत में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर भी दिये गये हैं। Apara ekadashi vrat katha
अपरा एकादशी व्रत कथा मूल संस्कृत में
युधिष्ठिर उवाच
ज्येष्ठस्य कृष्णपक्षे तु किं नामैकादशी भवेत् । श्रोतुमिच्छामि माहात्म्यं तद्वदस्व जनार्दन ॥१॥
श्रीकृष्ण उवाच
साधु पृष्टं त्वया राजन् लोकानां हितकाम्यया । बहुपुण्यप्रदा ह्येषा महापातकनाशिनी ॥
अपरानाम राजेन्द्र अपारफलदायिनी । लोके प्रसिद्धतां याति अपरां यस्तु सेवते ॥
ब्रह्महत्याभिभूतोऽपि गोत्रहा भ्रूणहा तथा । परापवादवादी च परस्त्रीरसिकोऽपि च ॥
अपरासेवनाद्राजन् विपाप्मा भवति ध्रुवम् । कूटसाक्ष्यं मानकूटं तुलाकूटं करोति यः ॥५॥
कूटवेदं पठेद्विप्रः कूटशास्त्रं करोति च । ज्योतिषी कूटगणकः कूटायुर्वेदको भिषक् ॥
कूटसाक्षिसभा ह्येते विज्ञेया नरकौकसः । अपरासेवनाद्राजन् पापमुक्ता भवन्ति ते ॥
क्षत्रियः क्षात्रधर्मं यस्त्यक्त्वा युद्धात्पलायते । स याति नरकं घोरं स्वीयधर्मबहिष्कृतः ॥
अपरासेवनाद्राजन् पापं त्यक्त्वा दिवं व्रजेत् । विद्यामधीत्य यः शिष्यो गुरुनिन्दां करोति वै ॥
महापातकयुक्तोऽपि निरयं याति दारुणम्। अपरासेवनात् सोऽपि सद्गतिं प्राप्नुयान्नरः ॥१०॥
अपरामहिमानं तु शृणु राजन् वदाम्यहम्। पुष्करत्रितये स्नात्वा कार्तिक्यां यत्फलं लभेत् ॥
मकरस्थे रवौ माघे प्रयागे यत्फलं नृणाम् । काश्यां यत्प्राप्यते पुण्यं शिवरात्रेरुपोषणात् ॥
गयायां पिण्डदानेन यत्फलं प्राप्यते नरैः । सिंहस्थिते देवगुरौ गौतमीस्नानतो नरः ॥
यत्फलं समवाप्नोति कुम्भे केदारदर्शनात् । बदर्याश्रमयात्रायास्तत्तीर्थ सेवनादपि ॥
यत्फलं समवाप्नोति कुरुक्षेत्रे रविग्रहे । गजाश्वहेमदानेन यज्ञे कृत्स्नसुवर्णदः ॥१५॥
तत्फलं समवाप्नोति अपरायाः व्रतान्नरः। अर्धप्रसूतां गां दत्वा सुवर्णं वसुधां तथा ॥
नरो यत्फलमाप्नोति अपरायाः व्रतेन तत् । पापद्रुमकुठारोऽयं पापेन्धनदवानलः ॥
पापान्धकारसूर्योऽयं पापसारङ्गकेसरी । अपरैकादशी राजन् कर्तव्या पापभीरुभिः ॥
बुद्बुदा इव तोयेषु पुत्तिका इव जन्तुषु । जायन्ते मरणायैव एकादश्याः व्रतं विना ॥
अपरां समुपोष्यैव पूजयित्वा त्रिविक्रमम् । सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोकं व्रजेन्नरः ॥२०॥
लोकानां च हितार्थाय तवाग्रे कथितं मया । पठनाच्छ्रवणाद्राजन् सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥
॥ इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे ज्येष्ठ कृष्णाऽपरैकादशीवतमाहात्म्यं सम्पूर्णम् ॥१३॥
अपरा एकादशी व्रत कथा हिन्दी में
युधिष्ठिर बोले – हे जनार्दन ! ज्येष्ठ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का क्या नाम है ? मैं उसका माहात्म्य सुनना चाहता हूँ, उसको आप कहिए ।
श्रीकृष्ण बोले – हे राजन् ! तुमने संसार हित के लिए बहुत सुन्दर प्रश्न किया है। यह एकादशी बहुत पुण्यों को देने वाली और बड़े-बड़े पापों को नष्ट करने वाली है । हे राजेन्द्र ! यह अपरा एकादशी अनन्त फल को देने वाली है, जो अपरा का व्रत करते हैं वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं ।
हे राजन् ! अपरा के व्रत करने से ब्रह्महत्या, गोत्री की हिंसा, गर्भहत्या, दूसरे की निन्दा, परस्त्री-गमन आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं। झूठी गवाही देने वाले, झूठी प्रशंसा करने वाले, कम तौलने वाले, मिथ्या वेदपाठी ब्राह्मण, मिथ्या शास्त्र रचने वाला, ठग ज्योतिषी, कपटी वैद्य, ये सभी झूठी साक्ष्य देने वाले की तरह नरकगामी होते हैं । हे राजन् ! अपरा के सेवन करने से ये पाप से छूट जाते हैं ।
- जो क्षत्रिय अपने धर्म को छोड़ कर युद्ध से भाग जाता है, वह अपने धर्म से भ्रष्ट होकर घोर नरक में पड़ता है । हे राजन् ! अपरा का सेवन करने से वह निष्पाप होकर स्वर्ग को जाता है।
- जो शिष्य विद्या पढ़कर अपने गुरु की निन्दा करता है, जो बड़े पातक से युक्त होकर नरक को जाता है, अपरा का सेवन करने से वह मनुष्य सद्गति को प्राप्त होता है ।
हे राजन् ! मैं अपरा की महिमा कहता हूँ, उसे सुनो :
“कार्तिक पूर्णिमा को तीनों पुष्कर में स्नान करने से जो फल मिलता है, मकर के सूर्य-माघ में प्रयाग में स्नान करने से जो फल मिलता है, काशी में शिवरात्रि का व्रत करने से जो फल मिलता है, गया में पिण्डदान करने से जो फल मिलता है, सिंहस्थ बृहस्पति होने पर गौतमी नदी में स्नान करने से मनुष्य को जो फल मिलता है, कुम्भ में केदारनाथ के दर्शन से और बदरिकाश्रम की यात्रा और उस तीर्थ का सेवन करने से जो फल मिलता है, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र में हाथी, घोड़ा और सुवर्ण का दान करने से और यज्ञ में सुवर्ण का दान करने से जो फल मिलता है, वही फल मनुष्य को अपरा का सेवन करने से मिलता है।”
अर्धप्रसूता गौ, सुवर्ण और पृथ्वी दान करने से जो फल मिलता है, वही फल मनुष्य को अपरा का वत करने से मिलता है। यह पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी और पापरूपी ईंधन (वन) को जलाने के लिए अग्नि के समान है। पापरूपी अन्धकार के लिए सूर्य और पापरूपी हिरन के लिए सिंह के समान है। हे राजन् ! पाप से डरे हुए मनुष्यों को अपरा एकादशी का उपवास करना चाहिए ।
जो एकादशी का व्रत नहीं करते वे मनुष्य जल में बुलबुले के समान और जानवरों में फतिंगे के समान हैं। वे मरने के लिए ही संसार में जन्म लेते हैं । अपरा का व्रत और वामनदेवजी की पूजा करके मनुष्य सब पापों से छूट कर विष्णुलोक को जाता है । हे राजन् ! संसार के हित के लिए मैंने तुमसे कहा है । इसके माहात्म्य के पढ़ने और सुनने से सब पापों से मनुष्य छूट जाता है ।
अपरा एकादशी व्रत कथा का सारांश या भावार्थ
ज्येष्ठ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम अपरा एकादशी है। अपरा एकादशी से अधिक पुण्य प्रदान करने वाला अन्य कोई तीर्थ, व्रत आदि नहीं है। इसकी कथा में इसके माहात्म्य का उल्लेख किया गया है। पापरूपी वृक्ष को काटने के लिये यह कुल्हाड़ी के समान है तो पापरूपी ईंधन या वन को जलाने के लिये अग्नि के समान, पापरूपी अंधकार के लिये सूर्य के समान तो पापरूपी मृग के लिये सिंह के सामान है।
- अपरा एकादशी ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में होती है।
- इसकी कथा कहने-सुनने से सभी पापों का शमन हो जाता है।
कथा पुराण में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।