कार्तिक माहात्म्य त्रयोदशोऽध्यायः - कार्तिक माहात्म्य अध्याय 13 मूल संस्कृत में, हिन्दी अर्थ सहित

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 13 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 13 – इस कथा का एक अन्य आशय भी है वो यह है कि यदि आप धर्म का पालन करते भी हैं किन्तु देवताओं को अप्रसन्न कर रखा है तो वो असंतुष्ट देवता आपके विनाश का कारण बनते हैं। जलंधर धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करता था, रावण-कंस आदि की भांति न तो दुराचारी था न ही आततायी। फिर भी नारद जी ने देवताओं का हित साधने हेतु उस कर्म के लिये प्रेरित किया जो उसके विनाश का कारण बना।

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