कार्तिक माहात्म्य अध्याय 14 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य - चतुर्दशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 14

कार्तिक माहात्म्य के चौदहवें अध्याय में नंदीश्वर, गणेश और कार्तिकेय इन तीनों के साथ कालनेमि, शुम्भ और निशुंभ के युद्ध का वर्णन है। जब दैत्यसेना पीड़ित होने लगी तब स्वयं जलंधर युद्ध करने आ गया। जलंधर ने वीरभद्र के मस्तक पर परिघ से प्रहार किया जिससे वह छिन्नमस्तक होकर रुधिर वमन करता हुआ भूमि पर गिर गया। सर्वप्रथम मूल माहात्म्य संस्कृत में दिया गया है तत्पश्चात हिन्दी में अर्थ।

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 14 हिन्दी में

नारद जी ने कहा : तीनों राक्षस इन तीन सेनापतियों नन्दी, गणेश और कार्तिकेय को देख क्रोधित होकर मल्लयुद्ध करने को दौड़ा, नंदीश्वर कालनेमि से; गणेश शुम्भ से और कार्तिकेय निशुम्भ से युद्ध करने लगे। निशुम्भ ने कार्तिकेय के वाहन मयूर के हृदय में पांच बाण मारा जिससे मयूर मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। तब कार्तिकेय क्रोधित होकर शक्ति उठाने ही वाले थे कि निशुम्भ ने शीघ्रता से अपनी शक्ति का प्रयोग करके कार्तिकेय के शक्ति को काट दिया।

नंदीश्वर ने कालनेमि को सैकड़ों बाण मारकर सात बाणों से अश्व, धनुष तथा सारथी को काट दिया। क्रुद्ध कालनेमि ने नंदीश्वर के धनुष को काट दिया। नन्दीश्वर ने उसके आक्रमण को रोककर त्रिशूल से कालनेमि की छाती में प्रहार किया । कालनेमि का हृदय विदीर्ण हो गया तथा घोड़े और सारथी मर गये, तब कालनेमि ने भी पर्वत-शिखर के प्रहार से नन्दीश्वर को धराशायी कर दिया ।

एक ओर रथ तथा मूषकवाहनवाले श्रीगणेशजी और शुम्भ दोनों युद्ध करते हुए परस्पर एक-दूसरे पर बाणों की वर्षा करते हुए गुँथ गये । गणपति ने शुम्भ की छाती में बाण मार करके तीन बाणों से उनके सारथी को पृथ्वी पर गिरा दिया । अतिशय क्रोधित होकर शुम्भ ने भी गणेशजी पर बाणों की कराल वर्षा की और तीन बाणों से मूषक को मारकर मेघ की तरह गर्जना करने लगा । गणेशजी का वाहन मूषक बाणों से अति पीड़ित होकर चलने में असमर्थ हो गया, तब गणेशजी मूषक से उतरकर पैदल चलने लगे । गणेशजी ने अपने फरसे से शुम्भ के हृदय में प्रहार कर उसे भूमि पर गिरा दिया और स्वयं फिर अपने मूषक पर सवार हो गये ।

कालनेमि और निशुम्भ ये दोनों भी एकाएक गणेशजी को अंकुश से मदोन्मत्त हाथी के समान बाणों से मारने लगे । गणेशजी को कष्ट में देख असंख्य भूतगणों को साथ ले पराक्रमी वीरभद्र शीघ्रता से दौड़कर वहाँ आये । कूष्माण्ड, भैरव, बेताल, पिशाच तथा योगिनीगण, वीरभद्र के साथ आये । तब सैनिकों के सिंह के समान कोलाहल तथा घर्षर शब्द से पृथ्वी काँपने लगी ।

तब उस युद्धक्षेत्र में भूतगण दैत्यों को खाते हुए ऊपर-नीचे उछलते हुए नाचने लगे । नन्दीश्वर तथा स्वामि कार्तिकेय बड़ी सावधानी के साथ शीघ्रतापूर्वक बाणों को छोड़ते हुए संग्रामभूमि में दैत्यों को मारने लगे । छिन्न-भिन्न, मारे गये तथा गिरे हुए और भक्षण किये जाने के कारण दैत्यों की सेना बहुत व्याकुल और खिन्न हो गई।

इसी प्रकार दोनों पक्षों में युद्ध चल रहा था, उस समय शिवजी के गण प्रबल थे और उन्होंने जलन्धर के शुम्भ-निशुम्भ और महासुर कालनेमि आदि को पराजित कर दिया। यह देख कर सागर पुत्र जलंधर एक विशाल रथ पर चढ़कर – जिस पर लम्बी पताका लगी हुई थी – युद्धभूमि में आया। इधर जय और शील नामक शंकर जी के गण भी युद्ध में तत्पर होकर गर्जने लगे। इस प्रकार दोनो सेनाओं के हाथी, घोड़े, शंख, भेरी और दोनों ओर के सिंहनाद से धरती त्रस्त हो गयी।

जलंधर ने कुहरे के समान असंख्य बाणों को फेंक कर पृथ्वी से आकाश तक व्याप्त कर दिया और नंदी को पांच, गणेश को पांच, वीरभद्र को एक साथ ही बीस बाण मारकर उनके शरीर को छेद दिया और मेघ के समान गर्जना करने लगा।

यह देख कार्तिकेय ने भी दैत्य जलन्धर को अपनी शक्ति उठाकर मारी और घोर गर्जन किया, जिसके आघात से वह मूर्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़ा। परन्तु वह शीघ्र ही उठा पडा़ और क्रोधा विष्ट हो कार्तिकेय पर अपनी गदा से प्रहार करने लगा।

ब्रह्मा जी के वरदान की सफलता के लिए शंकर पुत्र कार्तिकेय पृथ्वी पर सो गये।

गणेश जी भी गदा के प्रहार से व्याकुल होकर धरती पर गिर पड़े। नंदी व्याकुल हो गदा प्रहार से पृथ्वी पर गिर गये। फिर दैत्य ने हाथ में परिध ले शीघ्र ही वीरभद्र को पृथ्वी पर गिरा देख शंकर जी गण चिल्लाते हुए संग्राम भूमि छोड़ बड़े वेग से भाग चले। वे भागे हुए गण शीघ्र ही शिवजी के पास आ गये और व्याकुलता से युद्ध का सब समाचार कह सुनाया। लीलाधारी भगवान ने उन्हें अभय दे सबका सन्तोषवर्द्धन किया।

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 14 भावार्थ/सारांश

कार्तिक माहात्म्य के चौदहवें अध्याय में नंदीश्वर, गणेश और कार्तिकेय इन तीनों के साथ कालनेमि, शुम्भ और निशुंभ के युद्ध का वर्णन है।

कथा पुराण में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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