कार्तिक माहात्म्य अध्याय 15 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य - पंचदशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 15

वीरभद्र को भूमि पर गिरा देख शिवगणों में हाहाकार मच गया और वो वहां चले गये जहां भगवान शंकर थे। तब स्वयं भगवान शंकर युद्ध करने आये एवं जलंधर के साथ उनका युद्ध होने लगा, जब जलंधर को प्रतीत हुआ कि भगवान शिव अजेय हैं तो उसने माया का प्रयोग किया और सभी अचेत से हो गये, और शिव का रूप धारण करके पार्वती पास गया किन्तु उसका भेद खुल गया तो पार्वती मानसरोवर जाकर भगवान विष्णु का आवाहन किया, भगवान विष्णु ने कहा है उसने जो मार्ग दिखाया है अब उसी के आधार पर उसका अंत होगा। सर्वप्रथम मूल माहात्म्य संस्कृत में दिया गया है तत्पश्चात हिन्दी में अर्थ।

कार्तिक मास कथा : कार्तिक माहात्म्य अध्याय 15 हिन्दी में

नारद जी ने कहा : वीरभद्र को भूमि पर गिरा देखकर अन्य सभी गण रण भूमि से हाहाकार करते हुये भागकर भगवान शंकर के पास आये। कोलहार सुनकर और अपने गणों को भागते देख रौद्र रूप महाप्रभु शंकर नन्दी पर चढ़कर प्रसन्नतापूर्वक युद्धभूमि में आये। उनको आया देख कर उनके पराजित गण फिर लौट आये और सिंहनाद करते हुए आयुद्धों से दैत्यों पर प्रहार करने लगे।

भीषण रूपधारी रूद्र को देख दैत्य भागने लगे तब जलन्धर हजारों बाण छोड़ता हुआ शंकर की ओर दौडा़। उसके शुम्भ निशुम्भ आदि वीर भी शंकर जी की ओर दौड़े। इतने में शंकर जी ने जलन्धर के सब बाण जालों को काट अपने अन्य बाणों की आंधी से दैत्यों को अपने फरसे से मार डाला। खड़गोरमा नामक दैत्य को अपने फरसे से मार डाला और बलाहक का भी सिर काट दिया। घस्मर भी मारा गया और शिवगण चिशि ने प्रचण्ड नामक दैत्य का सिर काट डाला। किसी को शिवजी के बैल ने मारा और कई उनके बाणों द्वारा मारे गये।

यह देख जलन्धर अपने शुम्भादिक दैत्यों को धिक्कारने और भयभीतों को धैर्य देने लगा। पर किसी प्रकार भी उसके भय ग्रस्त दैत्य युद्ध को न आते थे जब दैत्य सेना पलायन आरंभ कर दिया, तब महा क्रुद्ध जलन्धर ने शिवजी को ललकारा और सत्तर बाण मारकर शिवजी को दग्ध कर दिया। शिवजी उसके बाणों को काटते रहे। यहां तक कि उन्होंने जलन्धर की ध्वजा, छत्र और धनुष को काट दिया। फिर सात बाण से उसके शरीर में भी तीव्र आघात पहुंचाया। धनुष के कट जाने से जलन्धर ने गदा उठायी।

शिवजी ने उसकी गदा के टुकड़े कर दिये तब उसने समझा कि शंकर मुझसे अधिक बलवान हैं। अतएव उसने गन्धर्व माया उत्पन्न कर दी अनेक गन्धर्व अप्सराओं के गण पैदा हो गये, वीणा और मृदंग आदि बाजों के साथ नृत्य व गान होने लगा। इससे अपने गणों सहित रूद्र भी मोहित हो एकाग्र हो गये। उन्होंने युद्ध बंद कर दिया।

फिर तो काम मोहित जलन्धर बडी़ शीघ्रता से शंकर का रूप धारण कर वृषभ पर बैठकर पार्वती के पास पहुंचा उधर जब पार्वती ने अपने पति को आते देखा, तो अपनी सखियों का साथ छोड़ दिया और आगे आयी। उन्हें देख कामातुर जलन्धर का वीर्यपात हो गया और उसके पवन से वह जड़ भी हो गया। पार्वती से उसका भेद छुपा न रहा और अन्तर्धान हो उत्तर की मानसरोवर पर चली गयीं तब पार्वती ने विष्णु जी का ध्यान किया तो तत्काल विष्णु आ गये।

फिर पार्वती ने भगवान विष्णु से पूछा दैत्यधन का वह कृत्य कहा और यह प्रश्न किया कि क्या आप यह नहीं जानते हैं।

भगवान विष्णु ने कहा – आपकी कृपा से मुझे सब ज्ञात है। उसने स्वयं ही हमारा मार्गदर्शन किया है, वह पतिव्रता धर्म से ही सुरक्षित है और उसने जो किया उसके साथ भी अब वैसा ही करूँगा, क्योंकि पातिव्रत्यधर्म से जब तक सुरक्षित रहेगा तब तक अवध्य है।

ऐसा कह कर भगवान विष्णु भी छल के प्रत्युत्तर में छल करने के लिए जलन्धर के नगर की ओर गये। उधर महादेव रणभूमि में ही खड़े थे। तब तक आसुरी माया भी समाप्त हो गयी और शंकर भगवान पुनः चेतना में आकर युद्ध करने आये व जलंधर भी बाणों की वर्षा करने लगा।

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 15 भावार्थ/सारांश

कार्तिक माहात्म्य के पन्द्रहवें अध्याय में जलंधर के माया और छल वाली कथा है। वीरभद्र को भूमि पर गिरा देख शिवगणों में हाहाकार मच गया और वो कोलाहल करते हुये वहां चले गये जहां भगवान शंकर थे। तब स्वयं भगवान शंकर युद्ध करने आये एवं जलंधर के साथ उनका युद्ध होने लगा। जब जलंधर को प्रतीत हुआ कि भगवान शिव अजेय हैं और इनको जीतना संभव नहीं है तो उसने माया का प्रयोग किया और सभी अचेत से हो गये।

तत्पश्चात कामपीड़ित जलंधर शिव का रूप धारण करके पार्वती पास गया किन्तु वहां उसका भेद खुल गया तो पार्वती ने मानसरोवर जाकर भगवान विष्णु का आवाहन किया, भगवान विष्णु के आने पर उनसे कहा कि जलंधर ने जो किया है क्या आपसे छिपा है। भगवान विष्णु ने कहा उसने तो हमें अपने अंत का मार्ग ही बताया है। वह अभी तक पातिव्रत्य धर्म से ही सुरक्षित और अजेय है किन्तु अब उसने छल का प्रयोग करके हमारे लिये भी मार्ग खोल दिया है।

इस अध्याय में यह बड़ी सीख मिलती है कि यदि हम किसी के साथ छल-प्रपंच करते हैं तो स्वयं के लिये भी छल-प्रपंच को निमंत्रित कर देते हैं।

कथा पुराण में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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