कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य - सप्तदशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17

कार्तिक माहात्म्य सत्रहवें अध्याय की कथा में जलंधर वध प्रसंग है। जलंधर युद्धभूमि में भगवान शिव की शक्ति से प्रभावित होकर माया का उपयोग करता है और मायागौरी का निर्माण करता है। भगवान शिव पार्वती की पीड़ा देख व्याकुल हो जाते हैं, किन्तु विष्णु के समझाने पर माया का निवारण हो जाता है। शिवजी की रौद्र अवस्था से दैत्य भाग जाते हैं। अंत में, जलंधर का विनाश होता है और देवताओं की प्रसन्नता होती है। पुनः भगवान विष्णु के मोह का निवारण करने की कथा है। सर्वप्रथम मूल माहात्म्य संस्कृत में दिया गया है तत्पश्चात हिन्दी में अर्थ, तत्पश्चात भावार्थ/सारांश ।

कार्तिक मास कथा : कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17 हिन्दी में

नारद जी ने कहा : इधर जलंधर युद्धभूमि में अडिग था, अपने अद्वितीय बल और पराक्रम के अभिमान में डूबा हुआ। भगवान शिव के अद्वितीय पराक्रम से अभिभूत होकर उसने मायादृश्य का प्रयोग प्रारंभ किया एवं मायागौरी का निर्माण किया, जिससे उसके सामर्थ्य को और भी बढ़ावा मिला।

भगवान शिव ने ध्यानपूर्वक देखा कि पार्वती रथ से बंधी हुई हैं, जहाँ दैत्य निशुम्भादि उन्हें सता रहा है और वह अत्यंत दुखी हैं। पार्वती की इस संकट की स्थिति को देखकर शिवजी में व्याकुलता फैल गई; उन्होंने कुछ काल के लिए अपने पराक्रम को भुलाकर चित्रपट की भांति हो जाने का निर्णय लिया, ताकि वे इस संकट का सामना कर सकें।

उसी समय जलंधर ने तीव्रता से उनके सिर, छाती और पेट में तीन बाण मारे, जिससे शिवजी को अपार पीड़ा हुई।

कार्तिक मास कथा : कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17 हिन्दी में
कार्तिक मास कथा

भगवान शिव की इस विकट स्थिति को देख भगवान विष्णु ने उन्हें समझाया; माया के ज्ञान प्राप्त करने पर शंकर जी ने भयंकर रौद्र रूप धारण किया, जिससे उनकी उपस्थिति से ही वातावरण में भय का संचार होने लगा। उनके इस रौद्र रूप को देखकर कोई भी दैत्य उनके समक्ष खड़ा होने का साहस नहीं कर सका और सब भागने लगे, यहाँ तक कि शुम्भ-निशुम्भ भी असमर्थ हो गए।

शिवजी ने उन दोनों को शाप देते हुए चेताया कि उन्होंने बड़ा अपराध किया है; युद्ध से भागना एक पाप है और इस पाप का परिणाम भोगना होगा।

शिवजी ने उन शुम्भ-निशुम्भ को शाप देकर बड़ा धिक्कारा और श्राप दिया – तुम दोनों ने मेरा बड़ा अपराध किया है। तुम युद्ध से भागते हो, भागते को मारना पाप है। इससे मैं तुम्हें अब नहीं मारूंगा परन्तु गौरी तुमको अवश्य मारेगी।

शिवजी के ऐसा कहने पर सागरपुत्र जलन्धर क्रोध से अग्नि के समान प्रज्वलित हो उठा। उसने शिवजी पर घोर बाण बरसाकर धरती पर अन्धकार कर दिया तब उस दैत्य की ऐसी चेष्टा देखकर शंकर जी बड़े क्रोधित हुए तथा उन्होंने अपने चरणांगुष्ठ से बनाये हुए सुदर्शन चक्र को चलाकर उसका सिर काट लिया।

एक प्रचण्ड शब्द के साथ उसका सिर पृथ्वी पर गिर पड़ा और अंजन पर्वत के समान उसके शरीर के दो खण्ड हो गये। उसके रुधिर से संग्राम-भूमि व्याप्त हो गई। शिवाज्ञा से उसका रक्त और मांस महारौरव में जाकर रक्त का कुण्ड हो गया तथा उसके शरीर का तेज निकलकर शंकर जी में वैसे ही प्रवेश कर गया जैसे वृन्दा का तेज गौरी के शरीर में प्रविष्ट हुआ था।

जलन्धर को मरा देख देवता और सब गन्धर्व प्रसन्न हो गये। तब ब्रह्मादिक देवताओं के नेत्र हर्ष से खिल गये और उन्होंने शिवजी को प्रणाम कर विष्णु जी का वह सब वृत्तान्त कह सुनाया जो उन्होंने बड़े प्रयत्न से वृन्दा को मोहित किया था तथा वह अग्नि में प्रवेश कर परमगति को प्राप्त हुई थी। देवताओं ने यह भी कहा कि तभी से वृन्दा की सुन्दरता पर मोहित हुए विष्णु उनकी चिता की राख लपेट इधर-उधर घूमते हैं। अतएव आप उन्हें समझाइए क्योंकि यह सारा चराचर आपके आधीन है।

देवताओं से यह सारा वृत्तान्त सुन शंकर जी ने उन्हें अपनी माया समझाई और कहा कि उसी से मोहित विष्णु भी काम के वश में हो गये हैं। परन्तु महादेवी उमा, त्रिदेवों की जननी सबसे परे वह मूल प्रकृति, परम मनोहर और वही गिरिजा भी कहलाती है। अतएव विष्णु का मोह दूर करने के लिए आप सब उनकी शरण में जाइए।

शंकर जी की आज्ञा से सब देवता मूल-प्रकृति को प्रसन्न करने चले। उनके स्थान पर पहुंचकर उनकी बड़ी स्तुति की तब यह आकाशवाणी हुई कि हे देवताओं! मैं ही तीन प्रकार से तीनों गुणों से पृथक होकर स्थित सत्य गुण से गौरा, रजोगुण से लक्ष्मी और तमोगुण से ज्योति रूप हूँ। अतएव अब आप लोग मेरी रक्षा के लिए उन देवियों के पास जाओ तो वे तुम्हारे मनोरथों को पूर्ण कर देगीं।

यह सब सुनकर देवता भगवती के वाक्यों का आदर करते हुए गौरी, लक्ष्मी और सरस्वती को प्रणाम करने लगे। सब देवताओं ने भक्ति पूर्वक उन सब देवियों की प्रार्थना की। उउस स्तुति से तीनों देवियाँ प्रकट हो गईं। सभी देवताओं ने उत्साह के साथ निवेदन किया; तब उन देवियों ने कुछ बीज देकर कहा – इसे लेकर जाओ और बो दो, आपके सभी कार्य सिद्ध हो जाएंगे।

कार्तिक मास कथा : कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17 हिन्दी में
कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17 हिन्दी में

ब्रह्मादिक देवता उन बीजों को लेकर विष्णु जी के पास गए और वृन्दा की चिता-भूमि में डाल दिया। इससे धात्री, मालती और तुलसी प्रकट हुईं। विधात्री के बीज से धात्री, लक्ष्मी के बीज से मालती और गौरी के बीज से तुलसी प्रकट हुईं। विष्णु जी ने ज्योंही उन स्त्री रूपवाली वनस्पतियों को देखा तो वे उठ बैठे। कामासक्त चित्त से मोहित हो उनसे याचना करने लगे। धात्री और तुलसी ने उनसे प्रीति की। विष्णु जी सारा दुख भूल देवताओं से नमस्कृत हो अपने लोक बैकुण्ठ में चले। वह पहले की तरह सुखी होकर शंकर जी का स्मरण करने लगे। यह आख्यात शिवजी की भक्ति देने वाला है।

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17 भावार्थ/सारांश

कार्तिक माहात्म्य सत्रहवें अध्याय की कथा में जलंधर वध प्रसंग है। जलंधर युद्धभूमि में भगवान शिव की शक्ति से प्रभावित होकर माया का उपयोग करता है और मायागौरी का निर्माण करता है। भगवान शिव पार्वती की पीड़ा देख व्याकुल हो जाते हैं, किन्तु विष्णु के समझाने पर माया का निवारण हो जाता है। शिवजी की रौद्र रूप धारण करते हैं, दैत्य भाग जाते हैं। शिवजी अंततः क्रोधित होकर जलंधर का सिर काट देते हैं।

देवताओं को उसके मारे जाने से खुशी होती है और वे शिवजी को प्रणाम करते हैं। इसके बाद, शक्तियों की उपासना के लिए देवता गौरी, लक्ष्मी, और सरस्वती की शरण में जाते हैं। इस श्रद्धानुसार, तीनों देवियां उनसे प्रसन्न होकर बीज देती हैं, जिससे वनस्पति उत्पन्न होती है। अंततः, उनके प्रयासों से धात्री, मालती और तुलसी उत्पन्न होती हैं, जिससे विष्णु पुनः शांति पाते हैं।

कथा पुराण में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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