तुलसी और आंवला का महत्व अत्यधिक है, विशेष रूप से भगवान विष्णु की दृष्टि में। तुलसी की पूजा करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होता है। तुलसी का पौधा जिस घर में होता है, वह तीर्थस्वरूप बन जाता है। इसी प्रकार, आंवले का वृक्ष भी पापों का नाश करता है और भगवान विष्णु को प्रिय है। कार्तिक मास में इन दोनों का पूजन विशेष रूप से फलदायी माना गया है, जिससे व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। सर्वप्रथम मूल माहात्म्य संस्कृत में दिया गया है तत्पश्चात हिन्दी में अर्थ, तत्पश्चात भावार्थ/सारांश ।
कार्तिक माहात्म्य अध्याय 18 मूल संस्कृत में
नारद उवाच
क्षिप्तेभ्यस्तत्रबीजेभ्यो वनस्पत्यस्त्रयोऽभवन् । धात्री च मालती चैव तुलसी च नृपोत्तम ॥१॥
धात्र्युद्भवा स्मृता धात्री माभवा मालती स्मृता । गौरीभवा च तुलसी तमः सत्त्व रजोगुणाः ॥२॥
स्त्रीरूपिण्यौ वनस्पत्यौ दृष्ट्वा विष्णुस्तदा नृप । उत्तस्थौ संभ्रमाद्वृंदारूपातिशयमोहितः ॥३॥
ददर्श तास्तदा मोहात्कामासक्तेन चेतसा । तं चापि तुलसीधात्र्यौ रागेणैवावलोकताम् ॥४॥
यच्चलक्ष्म्यापुराबीजंमाययैवसमर्पितम् । तस्मात्तदुद्भवानारीतस्मिन्नीर्ष्यायुताऽभवत् ॥५॥
अतः साबर्बरीत्याख्यामाधवस्यातिगर्हिता । धात्रीतुलस्यौतद्रागात्तस्यप्रीतिप्रदेसदा ॥६॥
ततो विस्मृतदुःखोऽसौ विष्णुस्ताभ्यां सहैव तु । वैकुंठमगमद्धृष्टः सर्वदेवनमस्कृतः ॥७॥
कार्तिकोद्यापने विष्णोस्तस्मात्पूजा विधीयते । तुलसीमूलदेशे तु प्रीतिदा सा यतः स्मृता ॥८॥
तुलसीकाननं राजन्गृहे यस्यावतिष्ठते । तद्गृहं तीर्थरूपं तु नायांति यमकिंकराः ॥९॥
सर्वपापहरं पुण्यं कामदं तुलसीवनम् । रोपयंति नरश्रेष्ठा न तेपश्यंति भास्करिम् ॥१०॥
दर्शनं नर्मदायास्तु गंगास्नानं तथैव च । तुलसीवनसंसर्गः सममेतत्त्रयं स्मृतम् ॥११॥
रोपणात्पालनात्सेकाद्दर्शनात्स्पर्शनान्नृणाम् । तुलसी दहते पापं वाङ्मनःकाय संचितम् ॥१२॥
तुलसीमंजरीभिर्यः कुर्याद्धरिहरार्चनम् । न स गर्भगृहं याति मुक्तिभागी न संशयः ॥१३॥
पुष्करादीनि तीर्थानि गंगाद्याः सरितस्तथा । वासुदेवादयो देवास्तिष्ठंति तुलसीदले ॥१४॥
तुलसीमंजरीयुक्तो यदि प्राणान्विमुंचति । विष्णोः सायुज्यमाप्नोति सत्यं सत्यं नृपोत्तम ॥१५॥
तुलसीमृत्तिकालिप्तो यस्तु प्राणान्विमुचंति । यमोऽपि नेक्षितुं शक्तो युक्तं पापशतैरपि ॥१६॥
तुलसीकाष्ठजं यस्तु चंदनं धारयेन्नरः । तद्देहं नस्पृशेत्पापं क्रियमाणमपीह यत् ॥१७॥
तुलसीविपिनच्छाया यत्र यत्र भवेन्नृप । तत्र श्राद्धं प्रकर्त्तव्यं पितॄणां दत्तमक्षयम् ॥१८॥
धात्रीछायासु यः कुर्यात्पिंडदानं नृपोत्तम । तृप्तिं च यांति पितरस्तस्य ये नरके स्थिताः ॥१९॥
मूर्ध्नि पाणौ मुखे चैव देहे च नृपसत्तम । धत्ते धात्रीफलं यस्तु स विज्ञेयो हरिः स्वयम् ॥२०॥
धात्रीफलं च तुलसीमृत्तिका द्वारकोद्भवा । यस्य देहे स्थिता नित्यं स जीवन्मुक्त उच्यते ॥२१॥
धात्रीफलविमिश्रैस्तु तुलसीदलमिश्रितैः । जलैः स्नाति नरस्तस्य गंगास्नानफलं स्मृतम् ॥२२॥
देवार्चनं नरः कुर्याद्धात्रीपत्रैः फलैरपि । सुवर्णपुष्पैर्विविधैरर्चनस्याप्नुयात्फलम् ॥२३॥
तीर्थानि मुनयो देवा यज्ञाः सर्वेऽपि कार्तिके । नित्यं धात्रीं समाश्रित्य तिष्ठंत्यर्के तुलाश्रिते ॥२४॥
द्वादश्यां तुलसीपत्रं धात्रीपत्रं तु कार्तिके । लुनाति स नरो गच्छेन्निरयानतिगर्हितान् ॥२५॥
धात्रीछायां समाश्रित्य कार्तिकेऽन्नं भुनक्ति यः । अन्नसंसर्गजं पापमावर्षं तस्य नश्यति ॥२६॥
धात्रीमूले तु यो विष्णुं कार्तिकेऽर्चयते नरः । विष्णुक्षेत्रेषु सर्वेषु पूजितस्तेन सर्वदा ॥२७॥
धात्रीतुलस्योर्माहात्म्यमपिदेवश्चतुर्मुखः । न समर्थो भवेद्वक्तुं यथा देवस्यशार्ङ्गिणः ॥२८॥
धात्री तुलस्युद्भवकारणं च शृणोति यः श्रावयते च भक्त्या ।
विधूतपाप्मा सह पूर्वजैश्च स्वर्गं व्रजत्यग्र्यविमानसंस्थः ॥२९॥
॥ इति श्रीपद्मपुराणे कार्तिकमाहात्म्ये कार्तिकामाहात्म्ये श्रीकृष्णसत्यभामासंवादे धात्रीतुलस्योर्माहात्म्यंनाम अष्टादशोऽध्यायः ॥
कार्तिक मास कथा : कार्तिक माहात्म्य अध्याय 18 हिन्दी में
नारद जी ने कहा : हे राजन! यही कारण है कि कार्तिक मास के व्रत उद्यापन में तुलसी की जड़ में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। तुलसी भगवान विष्णु को अधिक प्रीति प्रदान करने वाली मानी गई है। राजन! जिसके घर में तुलसीवन है वह घर तीर्थ स्वरूप है वहाँ यमराज के दूत नहीं आते। तुलसी का पौधा सदैव सभी पापों का नाश करने वाला तथा अभीष्ट कामनाओं को देने वाला है। जो श्रेष्ठ मनुष्य तुलसी का पौधा लगाते हैं वे यमराज को नहीं देखते।
- नर्मदा का दर्शन, गंगा का स्नान और तुलसी वन का संसर्ग – ये तीनों एक समान कहे गए हैं। जो तुलसी की मंजरी से संयुक्त होकर प्राण त्याग करता है वह सैकड़ों पापों से युक्त ही क्यों न हो तो भी यमराज उसकी ओर नहीं देख सकते।
- तुलसी को छूने से कामिक, वाचिक, मानसिक आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
जो मनुष्य तुलसी दल से भगवान का पूजन करते हैं वह पुन: गर्भ में नहीं आते अर्थात जन्म-मरण के चक्कर से छूट जाते हैं। तुलसी दल में पुष्कर आदि समस्त तीर्थ, गंगा आदि नदियाँ और विष्णु प्रभृति सभी देवता निवास करते हैं।
हे राजन! जो मनुष्य तुलसी के काष्ठ का चंदन लगाते हैं उन्हें सहज ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है और उनके द्वारा किए गए पाप उनके शरीर को छू भी नहीं पाते।
जहाँ तुलसी के पौधे की छाया होती है, वहीं पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना चाहिए। जिसके मुख में, कान में और मस्तक पर तुलसी का पत्ता दिखाई देता है, उसके ऊपर यमराज भी दृष्टि नहीं डाल सकते फिर दूतों की तो बात ही क्या है। जो प्रतिदिन आदर पूर्वक तुलसी की महिमा सुनता है वह सब पापों से मुक्त हो ब्रह्मलोक को जाता है। इसी प्रकार आंवले का महान वृक्ष सभी पापों का नाश करने वाला है।
आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को प्रिय है। इसके स्मरण मात्र से ही मनुष्य गोदान का फल प्राप्त करता है। जो मनुष्य कार्तिक में आंवले के वन में भगवान विष्णु की पूजा तथा आँवले की छाया में भोजन करता है, उसके भी पाप नष्ट हो जाते हैं। आंवले की छाया में मनुष्य जो भी पुण्य करता है, वह कोटि गुना हो जाता है। जो मनुष्य आंवले की छाया के नीचे कार्तिक में ब्राह्मण दम्पत्ति को एक बार भी भोजन देकर स्वयं भोजन करता है, वह अन्न दोष से मुक्त हो जाता है।
लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा रखने वाले मनुष्य को सदैव आंवले से स्नान करना चाहिए। नवमी, अमावस्या, सप्तमी, संक्रान्ति, रविवार, चन्द्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण के दिन आंवले से स्नान नहीं करना चाहिए। जो मनुष्य आंवले की छाया में बैठकर पिण्डदान करता है, उसके पितर भगवान विष्णु के प्रसाद से मोक्ष को प्राप्त होते हैं। जो मनुष्य आंवले के फल और तुलसी दल को पानी में मिलाकर स्नान करता है, उसे गंगा स्नान का फल मिलता है।
जो मनुष्य आंवले के पत्तों और फलों से देवताओं का पूजन करता है, उसे स्वर्ण मणि और मोतियों द्वारा पूजन का फल प्राप्त होता है। कार्तिक मास में जब सूर्य तुला राशि में होता है, तब सभी तीर्थ, ऋषि, देवता और सभी यज्ञ आंवले के वृक्ष में वास करते हैं। जो मनुष्य द्वादशी तिथि को तुलसी दल और कार्तिक में आंवले की छाया में बैठकर भोजन करता है, उसके एक वर्ष तक अन्न-संसर्ग से उत्पन्न हुए पापों का नाश हो जाता है।
जो मनुष्य कार्तिक में आंवले की जड़ में विष्णु जी का पूजन करता है, उसे श्री विष्णु क्षेत्रों के पूजन का फल प्राप्त होता है। आंवले और तुलसी की महत्ता का वर्णन करने में श्री ब्रह्मा जी भी समर्थ नहीं हैं, इसलिए धात्री और तुलसी जी की जन्म कथा सुनने से मनुष्य अपने वंश सहित भक्ति को पाता है।
कार्तिक माहात्म्य अध्याय 18 भावार्थ/सारांश
तुलसी और आंवले का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है। तुलसी और आंवला की पूजा का महत्व प्रस्तुत सामग्री में अत्यधिक महिमा के साथ बताया गया है, जहां ये पौधे सभी पापों का नाशक और मोक्ष प्रदान करने वाले माने जाते हैं। तुलसी, भगवान विष्णु को प्रिय मानी जाती है और इसके पौधे का होना घर को तीर्थ स्वरूप बनाता है और यमराज के दूत वहाँ नहीं आते। तुलसी को श्रद्धा से पूजने से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आंवला भी सभी पापों का नाशक है और इसके स्मरण से गोदान के समान फल मिलता है। कार्तिक मास में तुलसी और आंवले की पूजा विशेष महत्व रखती है।
इनकी छाया तथा संयोजन से पितरों की तृप्ति और पुण्य की वृद्धि होती है तुलसी के द्वारा की गई पूजा से पाप समाप्त होते हैं और पुनर्जन्म से मुक्ति मिलती है। तुलसी का स्पर्श या पूजन करने से मनुष्य जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है। कार्तिक मास में आंवले की पूजा से पापों का नाश होता है। तुलसी और आंवले की महत्ता का वर्णन करना भी कठिन है, क्योंकि ये मानवता को भक्ति और मोक्ष का मार्ग प्रदर्शित करते हैं। तुलसी और आंवला की महिमा सुनकर भक्त अपने वंश के साथ भक्ति को प्राप्त कर सकते हैं।
कथा पुराण में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।