कार्तिक माहात्म्य अध्याय 18 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य - अष्टादशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 18

तुलसी और आंवला का महत्व अत्यधिक है, विशेष रूप से भगवान विष्णु की दृष्टि में। तुलसी की पूजा करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होता है। तुलसी का पौधा जिस घर में होता है, वह तीर्थस्वरूप बन जाता है। इसी प्रकार, आंवले का वृक्ष भी पापों का नाश करता है और भगवान विष्णु को प्रिय है। कार्तिक मास में इन दोनों का पूजन विशेष रूप से फलदायी माना गया है, जिससे व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। सर्वप्रथम मूल माहात्म्य संस्कृत में दिया गया है तत्पश्चात हिन्दी में अर्थ, तत्पश्चात भावार्थ/सारांश ।

कार्तिक मास कथा : कार्तिक माहात्म्य अध्याय 18 हिन्दी में

नारद जी ने कहा : हे राजन! यही कारण है कि कार्तिक मास के व्रत उद्यापन में तुलसी की जड़ में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। तुलसी भगवान विष्णु को अधिक प्रीति प्रदान करने वाली मानी गई है। राजन! जिसके घर में तुलसीवन है वह घर तीर्थ स्वरूप है वहाँ यमराज के दूत नहीं आते। तुलसी का पौधा सदैव सभी पापों का नाश करने वाला तथा अभीष्ट कामनाओं को देने वाला है। जो श्रेष्ठ मनुष्य तुलसी का पौधा लगाते हैं वे यमराज को नहीं देखते।

  • नर्मदा का दर्शन, गंगा का स्नान और तुलसी वन का संसर्ग – ये तीनों एक समान कहे गए हैं। जो तुलसी की मंजरी से संयुक्त होकर प्राण त्याग करता है वह सैकड़ों पापों से युक्त ही क्यों न हो तो भी यमराज उसकी ओर नहीं देख सकते।
  • तुलसी को छूने से कामिक, वाचिक, मानसिक आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

जो मनुष्य तुलसी दल से भगवान का पूजन करते हैं वह पुन: गर्भ में नहीं आते अर्थात जन्म-मरण के चक्कर से छूट जाते हैं। तुलसी दल में पुष्कर आदि समस्त तीर्थ, गंगा आदि नदियाँ और विष्णु प्रभृति सभी देवता निवास करते हैं।

हे राजन! जो मनुष्य तुलसी के काष्ठ का चंदन लगाते हैं उन्हें सहज ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है और उनके द्वारा किए गए पाप उनके शरीर को छू भी नहीं पाते।

जहाँ तुलसी के पौधे की छाया होती है, वहीं पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना चाहिए। जिसके मुख में, कान में और मस्तक पर तुलसी का पत्ता दिखाई देता है, उसके ऊपर यमराज भी दृष्टि नहीं डाल सकते फिर दूतों की तो बात ही क्या है। जो प्रतिदिन आदर पूर्वक तुलसी की महिमा सुनता है वह सब पापों से मुक्त हो ब्रह्मलोक को जाता है। इसी प्रकार आंवले का महान वृक्ष सभी पापों का नाश करने वाला है।

आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को प्रिय है। इसके स्मरण मात्र से ही मनुष्य गोदान का फल प्राप्त करता है। जो मनुष्य कार्तिक में आंवले के वन में भगवान विष्णु की पूजा तथा आँवले की छाया में भोजन करता है, उसके भी पाप नष्ट हो जाते हैं। आंवले की छाया में मनुष्य जो भी पुण्य करता है, वह कोटि गुना हो जाता है। जो मनुष्य आंवले की छाया के नीचे कार्तिक में ब्राह्मण दम्पत्ति को एक बार भी भोजन देकर स्वयं भोजन करता है, वह अन्न दोष से मुक्त हो जाता है।

लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा रखने वाले मनुष्य को सदैव आंवले से स्नान करना चाहिए। नवमी, अमावस्या, सप्तमी, संक्रान्ति, रविवार, चन्द्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण के दिन आंवले से स्नान नहीं करना चाहिए। जो मनुष्य आंवले की छाया में बैठकर पिण्डदान करता है, उसके पितर भगवान विष्णु के प्रसाद से मोक्ष को प्राप्त होते हैं। जो मनुष्य आंवले के फल और तुलसी दल को पानी में मिलाकर स्नान करता है, उसे गंगा स्नान का फल मिलता है।

जो मनुष्य आंवले के पत्तों और फलों से देवताओं का पूजन करता है, उसे स्वर्ण मणि और मोतियों द्वारा पूजन का फल प्राप्त होता है। कार्तिक मास में जब सूर्य तुला राशि में होता है, तब सभी तीर्थ, ऋषि, देवता और सभी यज्ञ आंवले के वृक्ष में वास करते हैं। जो मनुष्य द्वादशी तिथि को तुलसी दल और कार्तिक में आंवले की छाया में बैठकर भोजन करता है, उसके एक वर्ष तक अन्न-संसर्ग से उत्पन्न हुए पापों का नाश हो जाता है।

जो मनुष्य कार्तिक में आंवले की जड़ में विष्णु जी का पूजन करता है, उसे श्री विष्णु क्षेत्रों के पूजन का फल प्राप्त होता है। आंवले और तुलसी की महत्ता का वर्णन करने में श्री ब्रह्मा जी भी समर्थ नहीं हैं, इसलिए धात्री और तुलसी जी की जन्म कथा सुनने से मनुष्य अपने वंश सहित भक्ति को पाता है।

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 18 भावार्थ/सारांश

तुलसी और आंवले का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है। तुलसी और आंवला की पूजा का महत्व प्रस्तुत सामग्री में अत्यधिक महिमा के साथ बताया गया है, जहां ये पौधे सभी पापों का नाशक और मोक्ष प्रदान करने वाले माने जाते हैं। तुलसी, भगवान विष्णु को प्रिय मानी जाती है और इसके पौधे का होना घर को तीर्थ स्वरूप बनाता है और यमराज के दूत वहाँ नहीं आते। तुलसी को श्रद्धा से पूजने से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आंवला भी सभी पापों का नाशक है और इसके स्मरण से गोदान के समान फल मिलता है। कार्तिक मास में तुलसी और आंवले की पूजा विशेष महत्व रखती है।

इनकी छाया तथा संयोजन से पितरों की तृप्ति और पुण्य की वृद्धि होती है तुलसी के द्वारा की गई पूजा से पाप समाप्त होते हैं और पुनर्जन्म से मुक्ति मिलती है। तुलसी का स्पर्श या पूजन करने से मनुष्य जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है। कार्तिक मास में आंवले की पूजा से पापों का नाश होता है। तुलसी और आंवले की महत्ता का वर्णन करना भी कठिन है, क्योंकि ये मानवता को भक्ति और मोक्ष का मार्ग प्रदर्शित करते हैं। तुलसी और आंवला की महिमा सुनकर भक्त अपने वंश के साथ भक्ति को प्राप्त कर सकते हैं।

कथा पुराण में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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