कार्तिक माहात्म्य - अष्टादशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 18

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 19 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 19 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में – सह्य पर्वत पर धर्मदत्त नामक एक धर्मज्ञ ब्राह्मण रहते थे। एक दिन कार्तिक मास में भगवान विष्णु के समीप जागरण करने के लिए वे भगवान के मंदिर की ओर चले। मार्ग में एक भयंकर राक्षसी आई। उसके बड़े दांत और लाल नेत्र देखकर ब्राह्मण भय से थर्रा उठे। उन्होंने पूजा की सामग्री से उस राक्षसी पर प्रहार किया। हरिनाम का स्मरण करके तुलसीदल मिश्रित जल से उसे मारा, इसलिए उसका सारा पातक नष्ट हो गया।

Read More
कार्तिक माहात्म्य - सप्तदशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में – जलंधर युद्धभूमि में भगवान शिव की शक्ति से प्रभावित होकर माया का उपयोग करता है और मायागौरी का निर्माण करता है। भगवान शिव पार्वती की पीड़ा देख व्याकुल हो जाते हैं, किन्तु विष्णु के समझाने पर माया का निवारण हो जाता है। शिवजी की रौद्र अवस्था से दैत्य भाग जाते हैं। अंत में, जलंधर का विनाश होता है और देवताओं की प्रसन्नता होती है।

Read More
कार्तिक माहात्म्य - षोडशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 16

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 16 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 16 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में : इस अध्याय की कथा में दो मुख्य बिन्दु है : प्रथम यह कि पातिव्रत्य धर्म की महत्ता। द्वितीय यह कि छल/असत्य आदि के माध्यम से प्रहार करने वाले के लिये उसी प्रकार से प्रत्युत्तर देना चाहिये।

Read More
कार्तिक माहात्म्य - तृतीयोध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 3

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 3 : Kartik Mahatmya

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 3 : Kartik Mahatmya – कार्तिक मास में व्रत करने वालों को सब प्रकार से धन, पुत्र-पुत्री आदि देते रहना और उनकी सभी आपत्तियों से रक्षा करना। हे धनपति कुबेर! मेरी आज्ञा के अनुसार तुम उनके धन-धान्य की वृद्धि करना क्योंकि इस प्रकार का आचरण करने वाला मनुष्य मेरा रूप धारण कर के जीवनमुक्त हो जाता है।

Read More
कार्तिक माहात्म्य - द्वितीयोध्यायः ; कार्तिक माहात्म्य अध्याय २

कार्तिक माहात्म्य द्वितीयोध्यायः – Kartik Mahatmya Adhyay 2

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 2 – Kartik Mahatmya Adhyay 2 : सत्यभामा पति की मृत्यु हो गयी तो शोकाकुल होने पर भी उसने धैर्य धारण किया और पति की अंतिम क्रिया करने के उपरांत आजीवन दो विशेष व्रतों का पालन करती रही एक एकादशी और दूसरी कार्तिक। दूसरे अध्याय की कथा में यह स्पष्ट हो जाता है कि कार्तिक मास भी एक व्रत ही है।

Read More
कार्तिक माहात्म्य - प्रथमोध्यायः - कार्तिक माहात्म्य अध्याय 1

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 1 – Kartik mahatmya

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 1 – Kartik mahatmya : एकदास्वर्गलोकाद्वैनारदोद्वारिकांगतः ॥ दिदृक्षयाभगवतोदेवदेवस्य वेधसः ॥१॥
दृष्ट्वाकृष्णंततः पूजांकृत्वाभक्तिसमन्वितः॥ पारिजातस्यपुष्पैकं ददौभगवतेतदा ॥२॥
कृष्णोर्पितद्गृहीत्वातु रुक्मिण्यैदत्तवांस्तदा ॥ एतस्मिन्नंतरेचैव नारदोमुनिसत्तमः ॥३॥

Read More