एकादशी व्रत कथा

एकादशी व्रत कथा – संक्षेप में 26 एकादशी की व्रत कथा

एकादशी व्रत कथा : सभी एकादशी के अलग-अलग नाम कहे गए हैं अरु सभी एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा भी विभिन्न नामों से की जाती है। सभी एकादशी के फल भी अलग-अलग बताये गए हैं जो नामानुसार परिलक्षित भी होते हैं। यहाँ सभी एकादशी के कथा संक्षेप में प्रस्तुत की जा रही है। यथाशीघ्र प्रत्येक एकादशी की अलग-अलग पूर्ण कथा भी प्रस्तुत की जाएगी।

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कार्तिक माहात्म्य - द्वितीयोध्यायः ; कार्तिक माहात्म्य अध्याय २

कार्तिक माहात्म्य द्वितीयोध्यायः – Kartik Mahatmya Adhyay 2

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 2 – Kartik Mahatmya Adhyay 2 : सत्यभामा पति की मृत्यु हो गयी तो शोकाकुल होने पर भी उसने धैर्य धारण किया और पति की अंतिम क्रिया करने के उपरांत आजीवन दो विशेष व्रतों का पालन करती रही एक एकादशी और दूसरी कार्तिक। दूसरे अध्याय की कथा में यह स्पष्ट हो जाता है कि कार्तिक मास भी एक व्रत ही है।

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जयंती एकादशी व्रत कथा - Jayanti ekadashi vrat katha in hindi

जयंती एकादशी व्रत कथा – Jayanti ekadashi vrat katha in hindi

जयंती एकादशी व्रत कथा – Jayanti ekadashi vrat katha in hindi : कथा के अनुसार राजा बलि से वामन भगवान ने इसी दिन तीन पग भूमि में सब-कुछ लेकर उसे पाताल लोक भेजकर सदा उसके पास रहने का वचन दिया था। भगवान विष्णु एक रूप से क्षीरसागर में और दूसरे रूप से पाताल में राजा बलि के यहां भी निवास करते हैं।

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कार्तिक माहात्म्य अध्याय 11 मूल संस्कृत में, हिन्दी अर्थ सहित

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 11 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 11 – जलंधर भगवान विष्णु से लक्ष्मी और गणों सहित अपने निवास पर रहने का वर मांगता है, जो विष्णु स्वीकार कर लेते हैं। तत्पश्चात जलंधर त्रिभुवन पर शासन करता है, देव-दानव-यक्ष-गन्धर्व आदि सभी उसके वशवर्ती हो जाते हैं,देवताओं के सभी रत्नादि पर भी जलंधर का अधिकार हो जाता है। जलंधर प्रजा का धर्मपूर्वक पालन करता है।

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कार्तिक माहात्म्य - षोडशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 16

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 16 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 16 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में : इस अध्याय की कथा में दो मुख्य बिन्दु है : प्रथम यह कि पातिव्रत्य धर्म की महत्ता। द्वितीय यह कि छल/असत्य आदि के माध्यम से प्रहार करने वाले के लिये उसी प्रकार से प्रत्युत्तर देना चाहिये।

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मोहिनी एकादशी व्रत कथा - Mohini ekadashi vrat katha

मोहिनी एकादशी व्रत कथा – Mohini ekadashi vrat katha

मोहिनी एकादशी व्रत कथा – Mohini ekadashi vrat katha : श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को वैशाख शुक्लपक्ष की एकादशी का महत्व बताया, जिसे मोहिनी एकादशी कहा जाता है। मोहिनी एकादशी का व्रत ऐसा है जो हर पाप का मिटा देता है। युधिष्टिर ने श्री कृष्ण से इसकी महिमा पूछी और उन्होंने राम और वशिष्ठ की कथा सुनाई। धृष्टबुद्धि जैसे पापी भी इस व्रत के प्रभाव से अपने पापों से छुटकारा पा सकते हैं तो सामान्य मनुष्यों की बात ही क्या है।

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पद्मिनी एकादशी व्रत कथा - Padmini ekadashi vrat katha

पद्मिनी एकादशी व्रत कथा – Padmini ekadashi vrat katha

पद्मिनी एकादशी व्रत कथा – Padmini ekadashi vrat katha : अधिकमास में प्रथम पक्ष शुक्ल होता है और द्वितीय पक्ष कृष्ण होता है। अधिकमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पद्मिनी एकादशी है। पद्मिनी एकादशी की व्रत कथा में मुख्य रूप से एकादशी व्रत का माहात्म्य तो बताया ही गया है साथ ही एकादशी व्रत की विधि भी बताई गयी है। इस कथा में कार्तवीर्य अर्जुन (सहस्रार्जुन) के जन्म की भी कथा है।

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श्री राम नवमी व्रत कथा - ram navami vrat vidhi

श्री राम नवमी व्रत कथा – Ram Navami vrat katha

Ram Navami vrat katha : श्री रामनवमी व्रत से जितना पुण्य प्राप्त होता है उतना पुण्य कठिन तपस्या करने से भी प्राप्त नहीं होता। श्री रामनवमी व्रत से जितना पुण्य प्राप्त होता है उतना पुण्य पूरी पृथ्वी दान करने से भी नहीं होता।

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फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी व्रत कथा - Amalaki ekadashi vrat katha

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा – Mokshada ekadashi vrat katha

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा – Mokshada ekadashi vrat katha : मोक्षदा एकादशी व्रत की कथा राजा वैखानस से संबंधित है जिसमें राजा वैखानस अपने पिता के नरक में कष्ट भोगते देख कर मोक्ष के उपाय ढूंढते हैं। उन्हें मुनि का आशीर्वाद मिलता है, जो मोक्षदा एकादशी करने का सुझाव देते हैं। राजा वैखानस ने इस व्रत को विधिपूर्वक किया और भगवान विष्णु की उपासना की, जिसके बाद उन्होंने अपने पिता को स्वर्ग में स्थान प्राप्त करते देखा।

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अनन्त व्रत कथा - Anant Vrat Katha

अनन्त व्रत कथा – Anant Vrat Katha 1 Chap.

अनन्त व्रत कथा : भाद्र शुक्ल चतुर्दशी को अनंत व्रत – पूजा की जाती है और कथा श्रवण करके अनंत धारण किया जाता है। बात जब कथा श्रवण की आती है तो देववाणी अर्थात संस्कृत का विशेष महत्व व फल होता है।

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