कार्तिक माहात्म्य - अष्टादशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 18

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 19 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 19 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में – सह्य पर्वत पर धर्मदत्त नामक एक धर्मज्ञ ब्राह्मण रहते थे। एक दिन कार्तिक मास में भगवान विष्णु के समीप जागरण करने के लिए वे भगवान के मंदिर की ओर चले। मार्ग में एक भयंकर राक्षसी आई। उसके बड़े दांत और लाल नेत्र देखकर ब्राह्मण भय से थर्रा उठे। उन्होंने पूजा की सामग्री से उस राक्षसी पर प्रहार किया। हरिनाम का स्मरण करके तुलसीदल मिश्रित जल से उसे मारा, इसलिए उसका सारा पातक नष्ट हो गया।

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कार्तिक माहात्म्य - पंचविंशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 25

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 25 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 25 – सतयुग में देश, त्रेता में ग्राम तथा द्वापर में कुलों को दिया पुण्य या पाप मिलता था, लेकिन कलियुग में कर्त्ता को ही भोगना पड़ता है। संसर्ग से पाप व पुण्य दूसरे को मिलते हैं। मैथुन में एकत्र होना और एक साथ भोजन करने से पाप-पुण्य का फल मिलता है। जो पंक्ति में बैठे हुए भोजन करने वालों की पत्तल लांघता है, वह अपने पुण्य का भाग देता है। बिना ऋण उतारे मृत्यु को प्राप्त होने पर ऋण देने वाले पुण्य के भागी होते हैं। इस प्रकार दूसरों के लिए पुण्य या पाप बिना दिए भी मिल सकते हैं, किन्तु यह नियम कलियुग में लागू नहीं होते। कलियुग में तो कर्त्ता को ही अपने पाप व पुण्य भोगने पड़ते हैं।

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पापांकुशा एकादशी व्रत कथा - Papankusha ekadashi vrat katha

पापांकुशा एकादशी व्रत कथा – Papankusha ekadashi vrat katha

पापांकुशा एकादशी व्रत कथा – Papankusha ekadashi vrat katha : आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है। पापों के लिये यह एकादशी अंकुश के सामान है इसीलिये इसका नाम पापांकुशा एकादशी है। मनुष्य जब तक पापांकुशा एकादशी नहीं करता है तब तक उसके शरीर का पाप नष्ट नहीं होता। इस एकादशी के प्रभाव से मनोकामना की पूर्ति होती है एवं स्वर्ग/मोक्ष के द्वार भी खुल जाते हैं।

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श्री राम नवमी व्रत कथा - ram navami vrat vidhi

श्री राम नवमी व्रत कथा – Ram Navami vrat katha

Ram Navami vrat katha : श्री रामनवमी व्रत से जितना पुण्य प्राप्त होता है उतना पुण्य कठिन तपस्या करने से भी प्राप्त नहीं होता। श्री रामनवमी व्रत से जितना पुण्य प्राप्त होता है उतना पुण्य पूरी पृथ्वी दान करने से भी नहीं होता।

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कार्तिक माहात्म्य - सप्तमोध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 7

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 7

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 7 : कार्तिक और माघादि मासव्रत करने वालों के लिये कुछ विशेष नियम बताये गये हैं और अन्य सभी व्रतों में भी इनका पालन करना आवश्यक होता है। इस प्रकार कार्तिक माहात्म्य के सातवें अध्याय में मुख्य रूप से नियमों की चर्चा – कर्तव्य और अकर्तव्य, विहित और निषिद्ध, ग्राह्य और त्याज्य आदि की चर्चा की गयी है।

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देवशयनी एकादशी व्रत कथा - Devshayani ekadashi vrat katha

देवशयनी एकादशी व्रत कथा – Devshayani ekadashi vrat katha

देवशयनी एकादशी व्रत कथा – Devshayani ekadashi vrat katha : आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम देवशयनी एकादशी है। इसका एक अन्य नाम पद्मा एकादशी भी है। इसमें राजा मान्धाता की कथा है जिसमें एक बार उनके राज्य में वर्षा बंद होने से अकाल हो गया और प्रजासहित अंगिरा मुनि के उपदेश से देवशयनी एकादशी का व्रत किया जिससे वर्षा हुई और अकाल का निवारण हो गया।

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कार्तिक माहात्म्य - अष्टाविंशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 28

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 28 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 28 – प्राचीनकाल में भगवान शिव तथा माता पार्वती विहार कर रहे थे। उस समय उनके विहार में विघ्न उपस्थित करने के उद्देश्य से अग्निदेव ब्राह्मण का रूप धारण करके वहाँ पहुँचे। विहार के आनन्द में विघ्न उपस्थित हो जाने के कारण कुपित होकर माता पार्वती ने सभी देवताओं को शाप दे दिया।

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कामिका एकादशी व्रत कथा - kamika ekadashi vrat katha in hindi

कामिका एकादशी व्रत कथा – kamika ekadashi vrat katha in hindi

कामिका एकादशी व्रत कथा – kamika ekadashi vrat katha in hindi : श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम कामिका एकादशी है। इस एकादशी की कथा में विशेषतः एकादशी व्रत का माहात्म्य वर्णित है जिसको सुनने मात्र से भी वाजपेय यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है। ब्रह्महत्या – गर्भहत्या जैसे जघन्य पाप भी इस एकादशी के प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी की कथा में भगवान विष्णु को तुलसी अतिप्रिय है यह भी बताया गया है।

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