महालक्ष्मी व्रत कथा

महालक्ष्मी व्रत कथा – Mahalaxmi Vrat Katha

महालक्ष्मी व्रत कथा – Mahalaxmi Vrat Katha : पूजा करने के बाद प्रतिदिन कथा भी श्रवण करनी चाहिये। कथा श्रवण के विषय में जो महत्वपूर्ण तथ्य है वो यह है कि हिन्दी आदि अन्य स्थानीय भाषाओं में भाव समझने के लिये तो सुना जा सकता है किन्तु फलदायकता हेतु संस्कृत में ही श्रवण करनी चाहिये।

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कार्तिक माहात्म्य - अष्टादशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 18

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 19 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 19 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में – सह्य पर्वत पर धर्मदत्त नामक एक धर्मज्ञ ब्राह्मण रहते थे। एक दिन कार्तिक मास में भगवान विष्णु के समीप जागरण करने के लिए वे भगवान के मंदिर की ओर चले। मार्ग में एक भयंकर राक्षसी आई। उसके बड़े दांत और लाल नेत्र देखकर ब्राह्मण भय से थर्रा उठे। उन्होंने पूजा की सामग्री से उस राक्षसी पर प्रहार किया। हरिनाम का स्मरण करके तुलसीदल मिश्रित जल से उसे मारा, इसलिए उसका सारा पातक नष्ट हो गया।

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माघकृष्ण षट्तिला एकादशी कथा - Shattila ekadashi

षट्तिला एकादशी व्रत कथा – Shattila ekadashi vrat katha

षट्तिला एकादशी व्रत कथा – Shattila ekadashi vrat katha : माघ महीने की षट्तिला एकादशी पर विशेष पूजा और तिल का दान करते हुए पापों का नाश किया जा सकता है। इसमें स्नान, उपवास और भगवान कृष्ण का स्मरण आदि करना चाहिये। पाठ में एक ब्राह्मणी की कथा भी है, जिसने कठिन व्रतों से स्वर्ग प्राप्त किया किन्तु अन्नदान नहीं करने के कारण उसके घर में धन और अन्न की कमी थी। अंततः उसने षट्तिला एकादशी का व्रत किया, जिससे उसे समृद्धि प्राप्त हुई।

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कार्तिक माहात्म्य - द्वाविंशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 22

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 22 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 22 – एक दिन विष्णुदास ने नित्यकर्म करने के बाद भोजन बनाया, किन्तु कोई उसे चुरा ले गया। उन्होंने दुबारा भोजन नहीं बनाया क्योंकि पूजा का समय छूट जाता। अगले दिन भी भगवान विष्णु को भोग अर्पण करने जाते समय भोजन फिर चुराया गया। इस क्रम में सात दिन बीत गये। विष्णुदास सोचने लगे – कौन ऐसा कर रहा है? उन्होंने रसोई की रक्षा करने का निश्चय किया।

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देवोत्थान एकादशी व्रत कथा - Devotthana ekadashi vrat katha

देवोत्थान एकादशी व्रत कथा – Devotthana ekadashi vrat katha

देवोत्थान एकादशी व्रत कथा – Devotthana ekadashi vrat katha : कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम देवोत्थान एकादशी है, प्रबोधिनी एकादशी भी एक अन्य नाम है। इस एकादशी को भगवान विष्णु का जागरण होता है। ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को इसकी कथा सुनाई है जिसका वर्णन स्कंदपुराण में है। इस कथा में एकादशी का माहात्म्य, तुलसी माहात्म्य, कार्तिक माह और चातुर्मास में भगवान विष्णु की पूजा माहात्म्य आदि भी बताया गया है।

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पद्मिनी एकादशी व्रत कथा - Padmini ekadashi vrat katha

पद्मिनी एकादशी व्रत कथा – Padmini ekadashi vrat katha

पद्मिनी एकादशी व्रत कथा – Padmini ekadashi vrat katha : अधिकमास में प्रथम पक्ष शुक्ल होता है और द्वितीय पक्ष कृष्ण होता है। अधिकमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पद्मिनी एकादशी है। पद्मिनी एकादशी की व्रत कथा में मुख्य रूप से एकादशी व्रत का माहात्म्य तो बताया ही गया है साथ ही एकादशी व्रत की विधि भी बताई गयी है। इस कथा में कार्तवीर्य अर्जुन (सहस्रार्जुन) के जन्म की भी कथा है।

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अनन्त व्रत कथा - Anant Vrat Katha

अनन्त व्रत कथा – Anant Vrat Katha 1 Chap.

अनन्त व्रत कथा : भाद्र शुक्ल चतुर्दशी को अनंत व्रत – पूजा की जाती है और कथा श्रवण करके अनंत धारण किया जाता है। बात जब कथा श्रवण की आती है तो देववाणी अर्थात संस्कृत का विशेष महत्व व फल होता है।

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कार्तिक माहात्म्य - एकविंशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 21

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 21 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 21 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में – विष्णु पार्षदों के वचन सुनकर धर्मदत्त ने कहा – सभी मनुष्य भक्तों का कष्ट दूर करने वाले श्रीविष्णु की विधिपूर्वक आराधना करते हैं। इनमें कौन-सा साधन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला है, यह जानने के लिए पार्षदों ने पूर्वजन्म की कथा सुनाने लगे। उन्होंने बताया कि कांचीपुरी में चोल नामक एक राजा हुए थे, जिनके शासन में कोई दरिद्र या दुःखी नहीं था।

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कार्तिक माहात्म्य - चतुर्विंशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 24

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 24 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 24 – ब्रह्मा ने यज्ञ करने का निर्णय लिया था और उस वक्त त्वरा और गायत्री के बीच विवाद हुआ। यज्ञ के समय त्वरा ने गायत्री को अपनी जगह बैठाने पर शाप दिया, कि सब देवता नदियां बन जाएंगे और गायत्री ने त्वरा को भी नदी बनने का श्राप दे दिया। इस पर देवता परेशान हुए और उनकी अनुपस्थिति के कारण यज्ञ में विघ्न आ गया। अंत में, सब देवता अपने अंशों से नदियाँ बने, जिसमें कृष्णा और वेणी शामिल हैं।

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