पापांकुशा एकादशी व्रत कथा - Papankusha ekadashi vrat katha

पापांकुशा एकादशी व्रत कथा – Papankusha ekadashi vrat katha

पापांकुशा एकादशी व्रत कथा – Papankusha ekadashi vrat katha : आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है। पापों के लिये यह एकादशी अंकुश के सामान है इसीलिये इसका नाम पापांकुशा एकादशी है। मनुष्य जब तक पापांकुशा एकादशी नहीं करता है तब तक उसके शरीर का पाप नष्ट नहीं होता। इस एकादशी के प्रभाव से मनोकामना की पूर्ति होती है एवं स्वर्ग/मोक्ष के द्वार भी खुल जाते हैं।

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ऋषि पंचमी व्रत पूजा विधि और कथा

ऋषि पंचमी व्रत कथा

ऋषि पंचमी व्रत कथा : भाद्र शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी कहा जाता है। इस दिन व्रत पूर्वक अरुंधतिसहित सप्तर्षियों का पूजन करना चाहिये। पूजा करने के उपरांत कथा श्रवण करे और फिर विसर्जन दक्षिणा करे। इस व्रत का माहात्म्य चकित करने वाला है क्योंकि यह व्रत प्रायश्चित्तात्मक है। स्त्रियां जो रजस्वला संबंधी स्पर्शास्पर्श नियमादि का उल्लंघन करती हैं चाहे ज्ञात रूप से हो अथवा अज्ञात रूप से ऋषि पंचमी के प्रभाव से उस दोष का शमन हो जाता है।

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कार्तिक माहात्म्य - चतुर्विंशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 24

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 24 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 24 – ब्रह्मा ने यज्ञ करने का निर्णय लिया था और उस वक्त त्वरा और गायत्री के बीच विवाद हुआ। यज्ञ के समय त्वरा ने गायत्री को अपनी जगह बैठाने पर शाप दिया, कि सब देवता नदियां बन जाएंगे और गायत्री ने त्वरा को भी नदी बनने का श्राप दे दिया। इस पर देवता परेशान हुए और उनकी अनुपस्थिति के कारण यज्ञ में विघ्न आ गया। अंत में, सब देवता अपने अंशों से नदियाँ बने, जिसमें कृष्णा और वेणी शामिल हैं।

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फाल्गुनकृष्ण विजया एकादशी कथा - Vijaya ekadashi

विजया एकादशी व्रत कथा – Vijaya ekadashi vrat katha

विजया एकादशी व्रत कथा – Vijaya ekadashi vrat katha : कथा के अनुसार जब सीताहरण के बाद सेना के साथ लंका विजय करने के लिए भगवान श्रीराम समुद्रतट पर पहुंचे तो अथाह समुद्र को देखकर विचलित हो गये। भाई लक्ष्मण के बताने पर निकट में स्थित वकदाल्भ्य मुनि के आश्रम पर गए तो उन्होंने विजया एकादशी व्रत करने का उपदेश दिया। भगवान श्रीराम ने मुनि की बताई विधि के अनुसार विजया एकादशी का व्रत किया और व्रत के प्रभाव से लंका विजय करके पुनः सीता और लक्ष्मण सही अयोध्या नगरी में वापस आये।

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वरुथिनी एकादशी व्रत कथा - Varuthini ekadashi vrat katha

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा – Varuthini ekadashi vrat katha

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा – Varuthini ekadashi vrat katha : वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम वरूथिनी एकादशी है। इस एकादशी की कथा में एकादशी व्रत की विशेष विधियों और नियमों का वर्णन किया गया है। यह एकादशी पुनर्जन्म के दुःख से मुक्ति प्रदान करती है। राजा मान्धाता, धुन्धुमार इसी व्रत के प्रभाव से स्वर्ग गये। भगवान शंकर भी इसी व्रत को करके ब्रह्मकपाल से मुक्त हुये।

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कार्तिक माहात्म्य - षष्ठोध्यायः

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 6

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 6 : कार्तिक, माघ आदि मासों में प्रातः स्नान मुख्य कर्म होता है, कार्तिक माहात्म्य के छठे अध्याय में मुख्य रूप से स्नान की विधि बताई गयी है। घर, जलाशय आदि में स्नान करने संबंधी फलों का उल्लेख संगम/तीर्थों में स्नान के फल को अनंत बताया गया है। स्नानोपरांत तर्पण करने का निर्देश भी दिया गया है जो महत्वपूर्ण है। भगवान विष्णु की पूजा तो करे ही साथ ही ब्राह्मण की पूजा भी करे ऐसा भी बताया गया है।

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जयंती एकादशी व्रत कथा - Jayanti ekadashi vrat katha in hindi

जयंती एकादशी व्रत कथा – Jayanti ekadashi vrat katha in hindi

जयंती एकादशी व्रत कथा – Jayanti ekadashi vrat katha in hindi : कथा के अनुसार राजा बलि से वामन भगवान ने इसी दिन तीन पग भूमि में सब-कुछ लेकर उसे पाताल लोक भेजकर सदा उसके पास रहने का वचन दिया था। भगवान विष्णु एक रूप से क्षीरसागर में और दूसरे रूप से पाताल में राजा बलि के यहां भी निवास करते हैं।

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कार्तिक माहात्म्य - सप्तदशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में – जलंधर युद्धभूमि में भगवान शिव की शक्ति से प्रभावित होकर माया का उपयोग करता है और मायागौरी का निर्माण करता है। भगवान शिव पार्वती की पीड़ा देख व्याकुल हो जाते हैं, किन्तु विष्णु के समझाने पर माया का निवारण हो जाता है। शिवजी की रौद्र अवस्था से दैत्य भाग जाते हैं। अंत में, जलंधर का विनाश होता है और देवताओं की प्रसन्नता होती है।

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कार्तिक माहात्म्य - नवमोध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 9

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 9 मूल संस्कृत में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 9 – जब इन्द्र और बृहस्पति भगवान शंकर के दर्शन के लिए गए, तो शंकर जी ने उनकी परीक्षा लेने हेतु जटाधारी रूप धारण किया। इन्द्र के अहंकार के कारण भगवान शिव से वाद-विवाद हुआ, भगवान शिव के नेत्रों से जो क्रोध निकला, उसे समुद्र में फेंक दिया, जिसके परिणामस्वरूप रुदन करता एक बालक उत्पन्न हुआ जिसे जलंधर कहा गया।

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