कार्तिक माहात्म्य - तृतीयोध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 3

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 3 : Kartik Mahatmya

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 3 : Kartik Mahatmya – कार्तिक मास में व्रत करने वालों को सब प्रकार से धन, पुत्र-पुत्री आदि देते रहना और उनकी सभी आपत्तियों से रक्षा करना। हे धनपति कुबेर! मेरी आज्ञा के अनुसार तुम उनके धन-धान्य की वृद्धि करना क्योंकि इस प्रकार का आचरण करने वाला मनुष्य मेरा रूप धारण कर के जीवनमुक्त हो जाता है।

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कार्तिक माहात्म्य - चतुर्दशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 14

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 14 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 14 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में – कार्तिक माहात्म्य के चौदहवें अध्याय में नंदीश्वर, गणेश और कार्तिकेय इन तीनों के साथ कालनेमि, शुम्भ और निशुंभ के युद्ध का वर्णन है। जब दैत्यसेना पीड़ित होने लगी तब स्वयं जलंधर युद्ध करने आ गया। जलंधर ने वीरभद्र के मस्तक पर परिघ से प्रहार किया जिससे वह छिन्नमस्तक होकर रुधिर वमन करता हुआ भूमि पर गिर गया।

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हरितालिका (तीज) कथा

हरितालिका (तीज) कथा

हरितालिका (तीज) कथा : पूजा का काल प्रदोषकाल ही होता है अतः प्रदोषकाल में ही पूजा करे। पवित्रीकरणादि करके सर्वप्रथम संकल्प करे। यदि चौदह वर्षों तक ही करना हो तो प्रथम वर्ष चौदह वर्ष करने का संकल्प करे, अन्य वर्षों में संकल्प करे। यदि 14 वर्ष से अधिक भी करना हो तो 14 वर्षों वाला संकल्प प्रथम वर्ष न करे।

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कार्तिक माहात्म्य - अष्टमोध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 8

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 8 मूल संस्कृत में और हिन्दी अर्थ सहित

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 8 – कार्तिक व्रत की पूर्णता उसके उद्यापन से होती है, जो विशिष्ट विधियों द्वारा सम्पन्न होता है। कार्तिक माह के आठवें अध्याय में नारद मुनि महाराज पृथु को बताते हैं कि उद्यापन के लिए तुलसी के आसपास सुंदर मंडप बनाकर भगवान विष्णु और उनके द्वारपालों की मूर्तियों की पूजा करनी चाहिए। उपवास, गीत-संगीत और व्रत की नियमित विधियों के पालन से पापों का नाश और विष्णु लोक की प्राप्ति संभव है। उद्यापन से व्रतकर्ता को भगवान की कृपा मिलती है और सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।

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माघकृष्ण षट्तिला एकादशी कथा - Shattila ekadashi

षट्तिला एकादशी व्रत कथा – Shattila ekadashi vrat katha

षट्तिला एकादशी व्रत कथा – Shattila ekadashi vrat katha : माघ महीने की षट्तिला एकादशी पर विशेष पूजा और तिल का दान करते हुए पापों का नाश किया जा सकता है। इसमें स्नान, उपवास और भगवान कृष्ण का स्मरण आदि करना चाहिये। पाठ में एक ब्राह्मणी की कथा भी है, जिसने कठिन व्रतों से स्वर्ग प्राप्त किया किन्तु अन्नदान नहीं करने के कारण उसके घर में धन और अन्न की कमी थी। अंततः उसने षट्तिला एकादशी का व्रत किया, जिससे उसे समृद्धि प्राप्त हुई।

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फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी व्रत कथा - Amalaki ekadashi vrat katha

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा – Mokshada ekadashi vrat katha

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा – Mokshada ekadashi vrat katha : मोक्षदा एकादशी व्रत की कथा राजा वैखानस से संबंधित है जिसमें राजा वैखानस अपने पिता के नरक में कष्ट भोगते देख कर मोक्ष के उपाय ढूंढते हैं। उन्हें मुनि का आशीर्वाद मिलता है, जो मोक्षदा एकादशी करने का सुझाव देते हैं। राजा वैखानस ने इस व्रत को विधिपूर्वक किया और भगवान विष्णु की उपासना की, जिसके बाद उन्होंने अपने पिता को स्वर्ग में स्थान प्राप्त करते देखा।

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मार्गकृष्ण उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा - utpanna ekadashi vrat katha in hindi

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा – utpanna ekadashi vrat katha

मार्गकृष्ण उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा – utpanna ekadashi vrat katha in hindi : हेमन्त ऋतु के मार्गशीर्ष माह में कृष्णपक्ष की एकादशी का व्रत करना चाहिए। दशमी की शाम दातुन करें और रात को भोजन न करें। एकादशी को सुबह संकल्पपूर्वक कार्य करें और स्नान करें। स्नान के बाद चंदन का तिलक लगाएं। भगवान का पूजन करें और रात को दीपदान करें। रात्रि में जागरण करते हुए श्री हरि का नाम जप करें।

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आमलकी एकादशी व्रत कथा - Amalaki ekadashi vrat katha

आमलकी एकादशी व्रत कथा – Amalaki ekadashi vrat katha

आमलकी एकादशी व्रत कथा – Amalaki ekadashi vrat katha : एक व्याधे ने भगवान की पूजा, कथा होते देखा-सुना, आहाररहित रहते हुये रात्रिजागरण भी कर लिया जिसके फलस्वरूप अगले जन्म में वह भी राजा बना और एक बार जब म्लेच्छों से घिर गया था तब एकादशी देवी ने प्रकट होकर म्लेच्छों का नाश किया।

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एकादशी व्रत कथा

एकादशी व्रत कथा – संक्षेप में 26 एकादशी की व्रत कथा

एकादशी व्रत कथा : सभी एकादशी के अलग-अलग नाम कहे गए हैं अरु सभी एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा भी विभिन्न नामों से की जाती है। सभी एकादशी के फल भी अलग-अलग बताये गए हैं जो नामानुसार परिलक्षित भी होते हैं। यहाँ सभी एकादशी के कथा संक्षेप में प्रस्तुत की जा रही है। यथाशीघ्र प्रत्येक एकादशी की अलग-अलग पूर्ण कथा भी प्रस्तुत की जाएगी।

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कार्तिक माहात्म्य - त्रयोविंशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 23

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 23 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 23 – इस कथा में भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय की उत्पत्ति और उनके चरित्र का वर्णन है। ये दोनों ब्रह्मन ऋषि कर्दम के पुत्र थे, जो भगवान विष्णु की अनंत भक्ति में लीन रहते थे। यज्ञ में भाग लेने के दौरान धन के वितरण में उनके बीच विवाद हुआ, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने एक-दूसरे को शाप दिया। भगवान विष्णु ने उनके दिए गए शापों को भोगने के बाद उन्हें उद्धार कर वैकुण्ठधाम पहुँचाया।

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