कार्तिक माहात्म्य - पंचविंशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 25

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 25 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 25 – सतयुग में देश, त्रेता में ग्राम तथा द्वापर में कुलों को दिया पुण्य या पाप मिलता था, लेकिन कलियुग में कर्त्ता को ही भोगना पड़ता है। संसर्ग से पाप व पुण्य दूसरे को मिलते हैं। मैथुन में एकत्र होना और एक साथ भोजन करने से पाप-पुण्य का फल मिलता है। जो पंक्ति में बैठे हुए भोजन करने वालों की पत्तल लांघता है, वह अपने पुण्य का भाग देता है। बिना ऋण उतारे मृत्यु को प्राप्त होने पर ऋण देने वाले पुण्य के भागी होते हैं। इस प्रकार दूसरों के लिए पुण्य या पाप बिना दिए भी मिल सकते हैं, किन्तु यह नियम कलियुग में लागू नहीं होते। कलियुग में तो कर्त्ता को ही अपने पाप व पुण्य भोगने पड़ते हैं।

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कार्तिक माहात्म्य - सप्तदशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 17 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में – जलंधर युद्धभूमि में भगवान शिव की शक्ति से प्रभावित होकर माया का उपयोग करता है और मायागौरी का निर्माण करता है। भगवान शिव पार्वती की पीड़ा देख व्याकुल हो जाते हैं, किन्तु विष्णु के समझाने पर माया का निवारण हो जाता है। शिवजी की रौद्र अवस्था से दैत्य भाग जाते हैं। अंत में, जलंधर का विनाश होता है और देवताओं की प्रसन्नता होती है।

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कार्तिक माहात्म्य - त्रयोविंशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 23

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 23 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 23 – इस कथा में भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय की उत्पत्ति और उनके चरित्र का वर्णन है। ये दोनों ब्रह्मन ऋषि कर्दम के पुत्र थे, जो भगवान विष्णु की अनंत भक्ति में लीन रहते थे। यज्ञ में भाग लेने के दौरान धन के वितरण में उनके बीच विवाद हुआ, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने एक-दूसरे को शाप दिया। भगवान विष्णु ने उनके दिए गए शापों को भोगने के बाद उन्हें उद्धार कर वैकुण्ठधाम पहुँचाया।

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श्री राम नवमी व्रत कथा - ram navami vrat vidhi

श्री राम नवमी व्रत कथा – Ram Navami vrat katha

Ram Navami vrat katha : श्री रामनवमी व्रत से जितना पुण्य प्राप्त होता है उतना पुण्य कठिन तपस्या करने से भी प्राप्त नहीं होता। श्री रामनवमी व्रत से जितना पुण्य प्राप्त होता है उतना पुण्य पूरी पृथ्वी दान करने से भी नहीं होता।

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देवोत्थान एकादशी व्रत कथा - Devotthana ekadashi vrat katha

देवोत्थान एकादशी व्रत कथा – Devotthana ekadashi vrat katha

देवोत्थान एकादशी व्रत कथा – Devotthana ekadashi vrat katha : कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम देवोत्थान एकादशी है, प्रबोधिनी एकादशी भी एक अन्य नाम है। इस एकादशी को भगवान विष्णु का जागरण होता है। ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को इसकी कथा सुनाई है जिसका वर्णन स्कंदपुराण में है। इस कथा में एकादशी का माहात्म्य, तुलसी माहात्म्य, कार्तिक माह और चातुर्मास में भगवान विष्णु की पूजा माहात्म्य आदि भी बताया गया है।

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कार्तिक माहात्म्य - चतुर्दशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 14

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 14 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 14 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में – कार्तिक माहात्म्य के चौदहवें अध्याय में नंदीश्वर, गणेश और कार्तिकेय इन तीनों के साथ कालनेमि, शुम्भ और निशुंभ के युद्ध का वर्णन है। जब दैत्यसेना पीड़ित होने लगी तब स्वयं जलंधर युद्ध करने आ गया। जलंधर ने वीरभद्र के मस्तक पर परिघ से प्रहार किया जिससे वह छिन्नमस्तक होकर रुधिर वमन करता हुआ भूमि पर गिर गया।

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कार्तिक माहात्म्य - द्वाविंशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 22

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 22 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 22 – एक दिन विष्णुदास ने नित्यकर्म करने के बाद भोजन बनाया, किन्तु कोई उसे चुरा ले गया। उन्होंने दुबारा भोजन नहीं बनाया क्योंकि पूजा का समय छूट जाता। अगले दिन भी भगवान विष्णु को भोग अर्पण करने जाते समय भोजन फिर चुराया गया। इस क्रम में सात दिन बीत गये। विष्णुदास सोचने लगे – कौन ऐसा कर रहा है? उन्होंने रसोई की रक्षा करने का निश्चय किया।

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कार्तिक माहात्म्य - पंचदशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 15

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 15 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 15 मूल संस्कृत में – वीरभद्र को भूमि पर गिरा देख शिवगणों में हाहाकार मच गया और वो वहां चले गये जहां भगवान शंकर थे। तब स्वयं भगवान शंकर युद्ध करने आये एवं जलंधर के साथ उनका युद्ध होने लगा, जब जलंधर को प्रतीत हुआ कि भगवान शिव अजेय हैं तो उसने माया का प्रयोग किया और सभी अचेत से हो गये

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कार्तिक माहात्म्य - चतुर्विंशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 24

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 24 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 24 – ब्रह्मा ने यज्ञ करने का निर्णय लिया था और उस वक्त त्वरा और गायत्री के बीच विवाद हुआ। यज्ञ के समय त्वरा ने गायत्री को अपनी जगह बैठाने पर शाप दिया, कि सब देवता नदियां बन जाएंगे और गायत्री ने त्वरा को भी नदी बनने का श्राप दे दिया। इस पर देवता परेशान हुए और उनकी अनुपस्थिति के कारण यज्ञ में विघ्न आ गया। अंत में, सब देवता अपने अंशों से नदियाँ बने, जिसमें कृष्णा और वेणी शामिल हैं।

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जयंती एकादशी व्रत कथा - Jayanti ekadashi vrat katha in hindi

जयंती एकादशी व्रत कथा – Jayanti ekadashi vrat katha in hindi

जयंती एकादशी व्रत कथा – Jayanti ekadashi vrat katha in hindi : कथा के अनुसार राजा बलि से वामन भगवान ने इसी दिन तीन पग भूमि में सब-कुछ लेकर उसे पाताल लोक भेजकर सदा उसके पास रहने का वचन दिया था। भगवान विष्णु एक रूप से क्षीरसागर में और दूसरे रूप से पाताल में राजा बलि के यहां भी निवास करते हैं।

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