कार्तिक माहात्म्य अध्याय 10 मूल संस्कृत में, हिन्दी अर्थ सहित

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 10 मूल संस्कृत में, हिन्दी अर्थ सहित

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 10 – वृंदा से विवाहित जलंधर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा था, एक बार संयोग से उसे राहु का कटा सिर दिखा जिसके बारे में उसने दैत्यगुरु शुक्राचार्य से प्रश्न किया तो शुक्राचार्य ने समुद्रमंथन से अमृत-रत्नादि निकलने से लेकर अमृतपान करने वाले राहु का भगवान विष्णु द्वारा सिर कटने की पूरी कथा बताई, जिसे सुनकर जलंधर अत्यंत क्रुद्ध हुआ और दैत्यों की सेना जुटाकर देवताओं से युद्ध करने लगा।

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माघशुक्ल जया एकादशी कथा - Jaya Ekadashi

जया एकादशी व्रत कथा – Jaya ekadashi vrat katha

जया एकादशी व्रत कथा – Jaya ekadashi vrat katha : माघ शुक्ला एकादशी, जिसे जया कहा जाता है, पापों को नष्ट करने वाली है। इस दिन व्रत करने से प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। वासुदेव की कृपा से यह एकादशी भक्तों को मोक्ष और स्वर्गलोक का सुख देती है।

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फाल्गुनकृष्ण विजया एकादशी कथा - Vijaya ekadashi

विजया एकादशी व्रत कथा – Vijaya ekadashi vrat katha

विजया एकादशी व्रत कथा – Vijaya ekadashi vrat katha : कथा के अनुसार जब सीताहरण के बाद सेना के साथ लंका विजय करने के लिए भगवान श्रीराम समुद्रतट पर पहुंचे तो अथाह समुद्र को देखकर विचलित हो गये। भाई लक्ष्मण के बताने पर निकट में स्थित वकदाल्भ्य मुनि के आश्रम पर गए तो उन्होंने विजया एकादशी व्रत करने का उपदेश दिया। भगवान श्रीराम ने मुनि की बताई विधि के अनुसार विजया एकादशी का व्रत किया और व्रत के प्रभाव से लंका विजय करके पुनः सीता और लक्ष्मण सही अयोध्या नगरी में वापस आये।

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पापांकुशा एकादशी व्रत कथा - Papankusha ekadashi vrat katha

पापांकुशा एकादशी व्रत कथा – Papankusha ekadashi vrat katha

पापांकुशा एकादशी व्रत कथा – Papankusha ekadashi vrat katha : आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है। पापों के लिये यह एकादशी अंकुश के सामान है इसीलिये इसका नाम पापांकुशा एकादशी है। मनुष्य जब तक पापांकुशा एकादशी नहीं करता है तब तक उसके शरीर का पाप नष्ट नहीं होता। इस एकादशी के प्रभाव से मनोकामना की पूर्ति होती है एवं स्वर्ग/मोक्ष के द्वार भी खुल जाते हैं।

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कार्तिक माहात्म्य - द्वितीयोध्यायः ; कार्तिक माहात्म्य अध्याय २

कार्तिक माहात्म्य द्वितीयोध्यायः – Kartik Mahatmya Adhyay 2

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 2 – Kartik Mahatmya Adhyay 2 : सत्यभामा पति की मृत्यु हो गयी तो शोकाकुल होने पर भी उसने धैर्य धारण किया और पति की अंतिम क्रिया करने के उपरांत आजीवन दो विशेष व्रतों का पालन करती रही एक एकादशी और दूसरी कार्तिक। दूसरे अध्याय की कथा में यह स्पष्ट हो जाता है कि कार्तिक मास भी एक व्रत ही है।

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माघकृष्ण षट्तिला एकादशी कथा - Shattila ekadashi

षट्तिला एकादशी व्रत कथा – Shattila ekadashi vrat katha

षट्तिला एकादशी व्रत कथा – Shattila ekadashi vrat katha : माघ महीने की षट्तिला एकादशी पर विशेष पूजा और तिल का दान करते हुए पापों का नाश किया जा सकता है। इसमें स्नान, उपवास और भगवान कृष्ण का स्मरण आदि करना चाहिये। पाठ में एक ब्राह्मणी की कथा भी है, जिसने कठिन व्रतों से स्वर्ग प्राप्त किया किन्तु अन्नदान नहीं करने के कारण उसके घर में धन और अन्न की कमी थी। अंततः उसने षट्तिला एकादशी का व्रत किया, जिससे उसे समृद्धि प्राप्त हुई।

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फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी व्रत कथा - Amalaki ekadashi vrat katha

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा – Mokshada ekadashi vrat katha

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा – Mokshada ekadashi vrat katha : मोक्षदा एकादशी व्रत की कथा राजा वैखानस से संबंधित है जिसमें राजा वैखानस अपने पिता के नरक में कष्ट भोगते देख कर मोक्ष के उपाय ढूंढते हैं। उन्हें मुनि का आशीर्वाद मिलता है, जो मोक्षदा एकादशी करने का सुझाव देते हैं। राजा वैखानस ने इस व्रत को विधिपूर्वक किया और भगवान विष्णु की उपासना की, जिसके बाद उन्होंने अपने पिता को स्वर्ग में स्थान प्राप्त करते देखा।

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कार्तिक माहात्म्य - तृतीयोध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 3

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 3 : Kartik Mahatmya

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 3 : Kartik Mahatmya – कार्तिक मास में व्रत करने वालों को सब प्रकार से धन, पुत्र-पुत्री आदि देते रहना और उनकी सभी आपत्तियों से रक्षा करना। हे धनपति कुबेर! मेरी आज्ञा के अनुसार तुम उनके धन-धान्य की वृद्धि करना क्योंकि इस प्रकार का आचरण करने वाला मनुष्य मेरा रूप धारण कर के जीवनमुक्त हो जाता है।

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कार्तिक माहात्म्य अध्याय 11 मूल संस्कृत में, हिन्दी अर्थ सहित

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 11 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 11 – जलंधर भगवान विष्णु से लक्ष्मी और गणों सहित अपने निवास पर रहने का वर मांगता है, जो विष्णु स्वीकार कर लेते हैं। तत्पश्चात जलंधर त्रिभुवन पर शासन करता है, देव-दानव-यक्ष-गन्धर्व आदि सभी उसके वशवर्ती हो जाते हैं,देवताओं के सभी रत्नादि पर भी जलंधर का अधिकार हो जाता है। जलंधर प्रजा का धर्मपूर्वक पालन करता है।

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पौषकृष्ण सफला एकादशी कथा - Safala ekadashi

सफला एकादशी व्रत कथा – Safala ekadashi vrat katha

सफला एकादशी व्रत कथा – Safala ekadashi vrat katha : पौष कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘सफला एकादशी’ है। इस दिन नारायण का पूजन करनी चाहिए और अच्छे ऋतु-फलों से भगवान का पूजन करना चाहिए; स्वच्छ नारियल, बिजौरे, जम्बीरी, अनार, सुपारी आदि से विधिपूर्वक पूजन करें। व्रत वाले दिन दीपदान करने और जागरण करने का भी विशेष महत्व है।

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