पौषशुक्ल पुत्रदा एकादशी कथा - Putrada Ekadashi

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा, श्रावण शुक्ल – Putrada ekadashi vrat katha in hindi

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा, श्रावण शुक्ल – Putrada ekadashi vrat katha in hindi : श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के पूछने पर महिष्मति पुरी के राजा महीजित की कथा सुनाई जो अपुत्र थे। लोमश ऋषि के उपदेश से प्रजा सहित उन्होंने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया जिससे उनको पुत्र की प्राप्ति हुयी और इसी कारण इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है।

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पौषशुक्ल पुत्रदा एकादशी कथा - Putrada Ekadashi

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा – Putrada ekadashi vrat katha

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा – Putrada ekadashi vrat katha : पुत्रदा एकादशी की कथा में राजा सुकेतुमान पुत्रहीनता से दुखी था, लेकिन इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से उसे पुत्र की प्राप्ति हुई। मुनियों की कृपा से राजा ने यह व्रत किया और सफलतापूर्वक एक तेजस्वी पुत्र पाया। यह व्रत न केवल इस लोक में पुत्र देता है, बल्कि मृत्यु के उपरांत स्वर्ग में भी स्थान दिलाता है।

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कार्तिक माहात्म्य - त्रयोविंशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 23

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 23 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 23 – इस कथा में भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय की उत्पत्ति और उनके चरित्र का वर्णन है। ये दोनों ब्रह्मन ऋषि कर्दम के पुत्र थे, जो भगवान विष्णु की अनंत भक्ति में लीन रहते थे। यज्ञ में भाग लेने के दौरान धन के वितरण में उनके बीच विवाद हुआ, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने एक-दूसरे को शाप दिया। भगवान विष्णु ने उनके दिए गए शापों को भोगने के बाद उन्हें उद्धार कर वैकुण्ठधाम पहुँचाया।

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सिद्धिविनायक व्रत कथा - Siddhivinayak Vrat Katha

सिद्धिविनायक व्रत कथा – Siddhivinayak Vrat Katha

सिद्धिविनायक व्रत कथा में भरद्वाज मुनि सूत से पूछते हैं कि विघ्नों का निवारण कैसे होगा। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया उत्तर में सिद्धिविनायक की पूजा व्रत करने को कहा गया, जिससे नष्टराज्य की पुनर्प्राप्ति हो सकती है। सिद्धिविनायक की पूजा से सभी कार्यों की सफलता होती है और चाहे विद्या हो या धन, विजय या सौभाग्य, सब इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

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कार्तिक माहात्म्य - तृतीयोध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 3

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 3 : Kartik Mahatmya

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 3 : Kartik Mahatmya – कार्तिक मास में व्रत करने वालों को सब प्रकार से धन, पुत्र-पुत्री आदि देते रहना और उनकी सभी आपत्तियों से रक्षा करना। हे धनपति कुबेर! मेरी आज्ञा के अनुसार तुम उनके धन-धान्य की वृद्धि करना क्योंकि इस प्रकार का आचरण करने वाला मनुष्य मेरा रूप धारण कर के जीवनमुक्त हो जाता है।

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फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी व्रत कथा - Amalaki ekadashi vrat katha

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा – Mokshada ekadashi vrat katha

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा – Mokshada ekadashi vrat katha : मोक्षदा एकादशी व्रत की कथा राजा वैखानस से संबंधित है जिसमें राजा वैखानस अपने पिता के नरक में कष्ट भोगते देख कर मोक्ष के उपाय ढूंढते हैं। उन्हें मुनि का आशीर्वाद मिलता है, जो मोक्षदा एकादशी करने का सुझाव देते हैं। राजा वैखानस ने इस व्रत को विधिपूर्वक किया और भगवान विष्णु की उपासना की, जिसके बाद उन्होंने अपने पिता को स्वर्ग में स्थान प्राप्त करते देखा।

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जयंती एकादशी व्रत कथा - Jayanti ekadashi vrat katha in hindi

जयंती एकादशी व्रत कथा – Jayanti ekadashi vrat katha in hindi

जयंती एकादशी व्रत कथा – Jayanti ekadashi vrat katha in hindi : कथा के अनुसार राजा बलि से वामन भगवान ने इसी दिन तीन पग भूमि में सब-कुछ लेकर उसे पाताल लोक भेजकर सदा उसके पास रहने का वचन दिया था। भगवान विष्णु एक रूप से क्षीरसागर में और दूसरे रूप से पाताल में राजा बलि के यहां भी निवास करते हैं।

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कार्तिक माहात्म्य - पंचविंशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 25

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 25 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 25 – सतयुग में देश, त्रेता में ग्राम तथा द्वापर में कुलों को दिया पुण्य या पाप मिलता था, लेकिन कलियुग में कर्त्ता को ही भोगना पड़ता है। संसर्ग से पाप व पुण्य दूसरे को मिलते हैं। मैथुन में एकत्र होना और एक साथ भोजन करने से पाप-पुण्य का फल मिलता है। जो पंक्ति में बैठे हुए भोजन करने वालों की पत्तल लांघता है, वह अपने पुण्य का भाग देता है। बिना ऋण उतारे मृत्यु को प्राप्त होने पर ऋण देने वाले पुण्य के भागी होते हैं। इस प्रकार दूसरों के लिए पुण्य या पाप बिना दिए भी मिल सकते हैं, किन्तु यह नियम कलियुग में लागू नहीं होते। कलियुग में तो कर्त्ता को ही अपने पाप व पुण्य भोगने पड़ते हैं।

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ऋषि पंचमी व्रत पूजा विधि और कथा

ऋषि पंचमी व्रत कथा

ऋषि पंचमी व्रत कथा : भाद्र शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी कहा जाता है। इस दिन व्रत पूर्वक अरुंधतिसहित सप्तर्षियों का पूजन करना चाहिये। पूजा करने के उपरांत कथा श्रवण करे और फिर विसर्जन दक्षिणा करे। इस व्रत का माहात्म्य चकित करने वाला है क्योंकि यह व्रत प्रायश्चित्तात्मक है। स्त्रियां जो रजस्वला संबंधी स्पर्शास्पर्श नियमादि का उल्लंघन करती हैं चाहे ज्ञात रूप से हो अथवा अज्ञात रूप से ऋषि पंचमी के प्रभाव से उस दोष का शमन हो जाता है।

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