श्री राम नवमी व्रत कथा - ram navami vrat vidhi

श्री राम नवमी व्रत कथा – Ram Navami vrat katha

Ram Navami vrat katha : श्री रामनवमी व्रत से जितना पुण्य प्राप्त होता है उतना पुण्य कठिन तपस्या करने से भी प्राप्त नहीं होता। श्री रामनवमी व्रत से जितना पुण्य प्राप्त होता है उतना पुण्य पूरी पृथ्वी दान करने से भी नहीं होता।

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कार्तिक माहात्म्य - अष्टादशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 18

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 19 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 19 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में – सह्य पर्वत पर धर्मदत्त नामक एक धर्मज्ञ ब्राह्मण रहते थे। एक दिन कार्तिक मास में भगवान विष्णु के समीप जागरण करने के लिए वे भगवान के मंदिर की ओर चले। मार्ग में एक भयंकर राक्षसी आई। उसके बड़े दांत और लाल नेत्र देखकर ब्राह्मण भय से थर्रा उठे। उन्होंने पूजा की सामग्री से उस राक्षसी पर प्रहार किया। हरिनाम का स्मरण करके तुलसीदल मिश्रित जल से उसे मारा, इसलिए उसका सारा पातक नष्ट हो गया।

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कार्तिक माहात्म्य अध्याय 10 मूल संस्कृत में, हिन्दी अर्थ सहित

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 10 मूल संस्कृत में, हिन्दी अर्थ सहित

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 10 – वृंदा से विवाहित जलंधर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा था, एक बार संयोग से उसे राहु का कटा सिर दिखा जिसके बारे में उसने दैत्यगुरु शुक्राचार्य से प्रश्न किया तो शुक्राचार्य ने समुद्रमंथन से अमृत-रत्नादि निकलने से लेकर अमृतपान करने वाले राहु का भगवान विष्णु द्वारा सिर कटने की पूरी कथा बताई, जिसे सुनकर जलंधर अत्यंत क्रुद्ध हुआ और दैत्यों की सेना जुटाकर देवताओं से युद्ध करने लगा।

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इंदिरा एकादशी व्रत कथा - Indira ekadashi vrat katha

इंदिरा एकादशी व्रत कथा – Indira ekadashi vrat katha in hindi

इंदिरा एकादशी व्रत कथा – Indira ekadashi vrat katha in hindi : आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण ने कथा कहते हुये महिष्मति पूरी के राजा इन्द्रसेन के द्वारा इंदिरा एकादशी व्रत करने से उसके पिता के सद्गति होने का माहात्म्य बताया।

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कार्तिक माहात्म्य - एकविंशोऽध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 21

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 21 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 21 मूल संस्कृत में, अर्थ हिन्दी में – विष्णु पार्षदों के वचन सुनकर धर्मदत्त ने कहा – सभी मनुष्य भक्तों का कष्ट दूर करने वाले श्रीविष्णु की विधिपूर्वक आराधना करते हैं। इनमें कौन-सा साधन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला है, यह जानने के लिए पार्षदों ने पूर्वजन्म की कथा सुनाने लगे। उन्होंने बताया कि कांचीपुरी में चोल नामक एक राजा हुए थे, जिनके शासन में कोई दरिद्र या दुःखी नहीं था।

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कार्तिक माहात्म्य - पञ्चमोध्यायः

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 5

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 5 : इसमें नित्यकर्म अर्थात शौच, शुद्धि आदि के विधान का उल्लेख करते हुये विष्णु-शिव आदि की पूजा करने, भजन-कीर्तन-नृत्य आदि का विधान बताया गया है। देवताओं के लिये वर्जित पुष्पों का भी इस आलेख में वर्णन किया गया है।

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कार्तिक माहात्म्य - तृतीयोध्यायः, कार्तिक माहात्म्य अध्याय 3

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 3 : Kartik Mahatmya

कार्तिक माहात्म्य अध्याय 3 : Kartik Mahatmya – कार्तिक मास में व्रत करने वालों को सब प्रकार से धन, पुत्र-पुत्री आदि देते रहना और उनकी सभी आपत्तियों से रक्षा करना। हे धनपति कुबेर! मेरी आज्ञा के अनुसार तुम उनके धन-धान्य की वृद्धि करना क्योंकि इस प्रकार का आचरण करने वाला मनुष्य मेरा रूप धारण कर के जीवनमुक्त हो जाता है।

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माघकृष्ण षट्तिला एकादशी कथा - Shattila ekadashi

षट्तिला एकादशी व्रत कथा – Shattila ekadashi vrat katha

षट्तिला एकादशी व्रत कथा – Shattila ekadashi vrat katha : माघ महीने की षट्तिला एकादशी पर विशेष पूजा और तिल का दान करते हुए पापों का नाश किया जा सकता है। इसमें स्नान, उपवास और भगवान कृष्ण का स्मरण आदि करना चाहिये। पाठ में एक ब्राह्मणी की कथा भी है, जिसने कठिन व्रतों से स्वर्ग प्राप्त किया किन्तु अन्नदान नहीं करने के कारण उसके घर में धन और अन्न की कमी थी। अंततः उसने षट्तिला एकादशी का व्रत किया, जिससे उसे समृद्धि प्राप्त हुई।

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पापांकुशा एकादशी व्रत कथा - Papankusha ekadashi vrat katha

पापांकुशा एकादशी व्रत कथा – Papankusha ekadashi vrat katha

पापांकुशा एकादशी व्रत कथा – Papankusha ekadashi vrat katha : आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है। पापों के लिये यह एकादशी अंकुश के सामान है इसीलिये इसका नाम पापांकुशा एकादशी है। मनुष्य जब तक पापांकुशा एकादशी नहीं करता है तब तक उसके शरीर का पाप नष्ट नहीं होता। इस एकादशी के प्रभाव से मनोकामना की पूर्ति होती है एवं स्वर्ग/मोक्ष के द्वार भी खुल जाते हैं।

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सिद्धिविनायक व्रत कथा - Siddhivinayak Vrat Katha

सिद्धिविनायक व्रत कथा – Siddhivinayak Vrat Katha

सिद्धिविनायक व्रत कथा में भरद्वाज मुनि सूत से पूछते हैं कि विघ्नों का निवारण कैसे होगा। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया उत्तर में सिद्धिविनायक की पूजा व्रत करने को कहा गया, जिससे नष्टराज्य की पुनर्प्राप्ति हो सकती है। सिद्धिविनायक की पूजा से सभी कार्यों की सफलता होती है और चाहे विद्या हो या धन, विजय या सौभाग्य, सब इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

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